शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

गीत अक्सर गुनगुनाया करो

ग़मगीन ही सही , जो तुम्हें पसन्द हो , वो गीत अक्सर गुनगुनाया करो 
वक़्त के साथ-साथ तुम भी तो मुस्कराया करो 

वक़्त के फेर में उलझ जाता है हर कोई 
तुम जरा वक्त से परे हो कर , ज़िन्दगी को सजाया करो 

कौन जाने कब बदल जायेगा मौसम का मिजाज 
तुम इस तरह भी फिजाँ को बुलाया करो 

आईना यूँ भी हम से कहता है , तू जो सोचता है 
दिखता है , खुद को यूँ भी न भुलाया करो 

आह से भी तो उपजता है गान 
गाने लगती है सारी कायनात , ये कभी न भुलाया करो 

तुम गुनगुनाओ के शब हो या सहर 
सूरज ने कभी छुट्टी न ली , उसे रोज बुलाया करो 

बुधवार, 5 फ़रवरी 2020

मजहब से ऊपर

हिन्दू होना या मुसलमाँ होना
मजहब से ऊपर है इन्साँ होना

वतन वतन है , जड़ें तेरी
मुश्किल है जमीँ से ज़ुदा होना

आदमी आदमी को सहता कब है
बहुत मुमकिन है ,हस्ती का गुमाँ होना

घर को साबुत रखने की कोशिश में
होना पड़ता है अना को फना होना

खून का रँग भी एक ही है
किसने समझा है दर्दे-अहसास का ज़ुबाँ होना

सुकूने-दिल ही सही राह का पता देगा
किसी की बाजू बनना ,काँधा होना

न दोहराना तारीखों को फिर से
मुश्किल है इतिहास को भुला पाना