रविवार, 29 मार्च 2015

हम सब हैं किताब

हम सब हैं किताब , पढ़ने वाला न मिला 
या खुदा ऐसा भी कोई ,चाहने वाला न मिला 

हाथ में हाथ लिये चलते रहे हम यूँ ही 
दूर तक कोई भी साथ निभाने वाला न मिला 

चलती रहती है सारी दुनिया यूँ तो दिल से 
फिर भी कोई पलकों पे बिठाने वाला न मिला 

गुनगुनाने के लिये चाहिये कोई तो फिजाँ 
वफ़ा के गीत कोई भी सुनाने वाला न मिला 

चाहिये ज़िन्दगी को कोई न कोई तो वजह 
बहाना कोई भी हमको चलाने वाला न मिला 

मंगलवार, 17 मार्च 2015

होली में मन रँग बैठी है

व्यस्तता की वजह से होली पर लिखा गीत होली के मौके पर पोस्ट नहीं कर पाई  ....

आँखें मलती उठ बैठी है , होली में मन रँग बैठी है 
एक उजास है अँगना में , चूनर अपनी रँग बैठी है 

सरक-सरक जाये है चुनरी ,गोरी खुद हल्कान हुई है 
दूर खड़े हैं कान्हा तब से , राधा जैसे मगन बैठी है 

हाथ गुलाल रँग पिचकारी , गुब्बारे भी दे-दे मारे 
बच्चे-बड़े हँसें किलकारी भर-भर,उम्र तो अल्हड़ बन बैठी है 

ले आया फागुन बौराई , मन को मिले ठाँव कोई न 
आँगन-आँगन रँग बरसे , उत्सव से भी ठन बैठी है 

भाँग-धतूरा नशा नहीं है , गले मिले बिन मजा नहीं है 
सिर चढ़ कर बोले ये जादू , होली-होली मगन बैठी है 

मीठी-मीठी तकरारों में , लाग-लपेट की मनुहारों में 
मौज-मस्ती की आड़ में देखो , रिश्तों की गरिमा बैठी है