बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

फूलों की क्यारी में काँटे लाजिमी हैं


गुलाबी गुलाबी रँग अरमानों के
गुलाबी गुलाबी ख्वाब इन्सानों के

.फूलों की क्यारी में काँटे लाजिमी हैं
गुलाबों के सँग इनकी आशिकी पली है
उलझा दामन तेरा तो क्यों गम है करता
चेहरे पे तेरे वो नूर बन बिखरता

२. बिना किसी धागे के पिरोयेगा कैसे
साँसों की माला के मोती हों जैसे
गुदड़ी में लाल जो तू छुपाये है फिरता
गुलाबी सी रँगत का ख्वाब बन उतरता

शनिवार, 14 फ़रवरी 2009

बंद गलियों से आगे


बंद गलियों से आगे मुकाम होता है
तेरी हिम्मत का जवाब होता है

तंगहाली ही सब्रोइम्तिहान होता है
राह काँटों से सजी फूल पैगाम होता है

उठते क़दमों से चलने का गुमान होता है
तूफानों के बाद ही आराम होता है

दम लगा कर ही कोई दमदार होता है
तेरा दम भी तेरा मेहनताना होता है

बंद गलियों के आगे मुकाम होता है
तेरी हिम्मत का जवाब होता है

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

दिल सुलगता ही रहा


दिल सुलगता ही रहा
गीली लकड़ियों की तरह

आग लगती है नहीं
चिन्गारी भी मिटती नहीं

सँसार किस तरह दिखे
जब आँख खुलती है नहीं

धुँआ-धुँआ सा अन्दर है
धुँआ-धुँआ है हर कहीं

धुँए के पार दिखता नहीं
आसमाँ की तरफ़ तकते रहे

अपनी दीवारों में क़ैद हो
ख़ुद से गिला करते रहे

टकरा के लौटी है हवा
रास्ता कहाँ हमने रखा

फूलों की डाली कहाँ सजी
दिलवालों की दिवाली कहाँ मनी

हम गीली लकडियाँ लिए
अपना ज़हन सुलगाते रहे

अपनी तपिश से बेखबर
हादसों को जगह देते रहे

धुँए का रुख , आसमान को
हवा की जरूरत हर कहीं

हवाओं का हिस्सा बन जाते गर
जश्न होता हर घड़ी और हर कहीं

सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

मेरे मन ने गाना सीख लिया

मेरे मन ने गाना सीख लिया
स्वप्न सरीखी दुनिया से ताल मिलाना सीख लिया

बच्चों सा ये रोता था , बच्चों सा ही चहकता था
निश्छल होकर भी निश्छल था
क्या खोना है , क्या पाना है , सुबह का तराना सीख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया


बूढों सी नसीहत देता था , हर बात में अगला पिछला कर
क़दमों को पंगु कर देता
जो होगा देखा जायेगा , क़दमों ने थिरकना सीख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया

लहरों का टकरा-टकरा कर , अठखेलियाँ करना देखा है
सागर से मचलना देखा है
इन रँग-बिरँगी चिड़ियों से , इन सा ही चहकना सीख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया


डरते थे शक करते थे , नियमों से बंधी इस दुनिया में
नियमों को देखा करते थे
कर्मों के बही-खाते में , अपना भी तराना देख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

गालिब ने कहा है

गालिब ने कहा है
मौत का एक दिन मुअइयन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
हम ये कहते हैं
सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती


जिन्दगी का जश्न मनायें कि मौत का मातम
खेल होगा तेरे लिए कठपुतली का , अपनी तो जान पे बन आती है


क्या करेगा इन चाक गरेबाँ वालों की जमात का
सूँघ लेते हैं गम हर जगह , दर्द से इनकी आशनाई नहीं जाती