स्वप्न सरीखी दुनिया से ताल मिलाना सीख लिया
बच्चों सा ये रोता था , बच्चों सा ही चहकता था
निश्छल होकर भी निश्छल न था
क्या खोना है , क्या पाना है , सुबह का तराना सीख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया
बूढों सी नसीहत देता था , हर बात में अगला पिछला कर
क़दमों को पंगु कर देता
जो होगा देखा जायेगा , क़दमों ने थिरकना सीख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया
लहरों का टकरा-टकरा कर , अठखेलियाँ करना देखा है
सागर से मचलना देखा है
इन रँग-बिरँगी चिड़ियों से , इन सा ही चहकना सीख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया
डरते थे शक करते थे , नियमों से बंधी इस दुनिया में
नियमों को न देखा करते थे
कर्मों के बही-खाते में , अपना भी तराना देख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया
मन ने गाना सीख तो, हँस - हँस गयी जवानी है।
जवाब देंहटाएंपरिवेशों ने सब सिखलाया, सुख की सही कहानी है।
डरते थे शक करते थे , नियमों से बंधी इस दुनिया में
जवाब देंहटाएंनियमों को न देखा करते थे
कर्मों के बही-खाते में , अपना भी तराना देख लिया
मेरे मन ने गाना सीख लिया
बहुत सुंदर पंक्तियाँ....सुंदर कविता.
कर्मों के बही-खाते में , अपना भी तराना देख लिया
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता.
very good*******
मन भावना के हिलोरे लेने लगा!
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चाँद, बादल और शाम