गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

गालिब ने कहा है

गालिब ने कहा है
मौत का एक दिन मुअइयन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
हम ये कहते हैं
सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती


जिन्दगी का जश्न मनायें कि मौत का मातम
खेल होगा तेरे लिए कठपुतली का , अपनी तो जान पे बन आती है


क्या करेगा इन चाक गरेबाँ वालों की जमात का
सूँघ लेते हैं गम हर जगह , दर्द से इनकी आशनाई नहीं जाती

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढिया!!

    सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
    नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती
    जिन्दगी का जश्न मनायें कि मौत का मातम
    खेल होगा तेरे लिए कठपुतली का , अपनी तो जान पे बन आती है

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  2. अच्छा लगा पढ़कर, अभिव्यक्ति सुंदर है !

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  3. क्या करेगा इन चाक गरेबाँ वालों की जमात का
    सूँघ लेते हैं गम हर जगह , दर्द से इनकी आशनाई नहीं जाती

    सही, बिलकुल सही.

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  4. सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
    नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती
    ..बहुत खूबसूरत कथ्य .

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  5. मृत्यु नही भयभीत कर सकी ,
    आजादी के परवानो को ।
    डर लगता है काल देख कर,
    केवल कायर इनसानों को।।

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं