बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

हम तेरे शहर से गुजरे

हम तेरे शहर से गुजरे , काफिला था साथ अपने
होते हैं दगाबाज तो , कच्ची उम्र के रन्गीं सपने

खेल कर तुम तो गये , मन्जर हो गये हैं खड़े
चल रहे हैं गाफिल सी बहर में , यादों में सँग-सँग अपने

कुसूर कोई तो होता , टीस सी लिये दिल में
चिन्गारी दामन में लिये , यादों की हवाएँ थीं साथ अपने

बुझा दिए खुद ही , अपने हाथों अरमानों के दिये
कच्ची सीढ़ियाँ चढ़े थे , अपनी आँखों के रन्गीं सपने

वफ़ा की राह में , बेकसी फूलों की देखो तो
खिले हुए हैं आरजू-ए-चमन में , खुशबू नहीं साथ अपने