मंगलवार, 22 जून 2010

जीते जी सर से

छन गया जीवन भी वक़्त की ही तरह
अपने हाथों से सँभाला न गया

मिट गए दुनिया की खातिर
मगर तन्हाई का निवाला न गया

स्याह रातों में दिल जला कर ही सही
राह से उम्मीद का उजाला न गया

अपनी दुनिया भी अजब सलमे-सितारों है जड़ी
जीते जी सर से दुशाला न गया

दुहाई दे दे कर कहते रहे
खुद के होने का हवाला न गया