शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

रँग होता तो बिखरता भी

रँग होता तो बिखरता भी
जुनूँ होता तो झलकता भी

आओ कोई तो बात करें
गुफ्तगू में वक्त गुजरता भी

नजदीकियों की कहें
करीब हो जो , झगड़ता भी

मजबूर है आदत से परिन्दा
आसमाँ का हाथ पकड़ता भी

आफ़ताब दूर सही
धरती पर कोई चमकता भी

बहाने लाख करे
पहलू में दिल धड़कता भी

रूप दुगना होता
इश्क मय सा छलकता भी

रँग होता तो बिखरता भी
जुनूँ होता तो झलकता भी



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