अपने जैसा कोई
नहीं मिला है
सुख की कोई
आधार शिला है
हर कोई तन्हा
बहुत हिला है
किस काँधे पर
आराम मिला है
चिन्गारी है
आग सिला है
धूप है हर सू
छाया का गिला है
दिल दहला और
मौसम खिला है
सदियों से सुख-दुख
का सिलसिला है
ग़ज़ल 441-[15-जी ]: उनको अना ग़ुरूर का ऐसा चढ़ा--
23 घंटे पहले