बुधवार, 2 नवंबर 2011

छाया का गिला है

अपने जैसा कोई
नहीं मिला है

सुख की कोई
आधार शिला है

हर कोई तन्हा
बहुत हिला है

किस काँधे पर
आराम मिला है

चिन्गारी है
आग सिला है

धूप है हर सू
छाया का गिला है

दिल दहला और
मौसम खिला है

सदियों से सुख-दुख
का सिलसिला है