गुरुवार, 29 जुलाई 2010

घर से मन्दिर की दूरी

घर से मस्जिद है बहुत दूर , चलो कुछ यूँ कर लें
चन्द रोते हुए बच्चों को हँसाया जाये
कुछ इसी तर्ज़ पर ( यूँ तो बहुत चुप रहती हूँ मैं , मगर मेरी लेखनी को सच बोलने की बीमारी है ) । .......

घर से मन्दिर की दूरी तय कर लें
चलो आज किसी का भी दिल न दुखायें

कर्म बन जाते हैं पूजा ही
जो किसी किस्मत को सँवार आयें

न फुर्सत है न चाहत ही है
कभी खुद से भी मिल आयें

भीड़ में भी तन्हा ही हैं
चन्द लम्हें किसी को सुन आयें

कितना बोलती है ये , चलो
यादों की गठरी को कहीं छोड़ आयें