अपने लिए तो ग़मों की रात ही जश्न बनी
जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं
इसीलिये सजदे में सर अब भी झुका रक्खा है
गम की आदत है ये दिन रात भुला देता है
हम नहीं आयेंगे इसके झाँसे में
चराग दिल का यूँ भी जला रक्खा है
नाम वाले भी कभी गुमनाम ही हुआ करते हैं
ज़िन्दगी गुमनामी से भी बढ़ कर है
ये गुमाँ खुद को पिला रक्खा है
शबे-गम की क्यूँ सहर होती नहीं
तारे गिनते गिनते रात भी कटे
इस उम्मीद पर दिल को बहला रक्खा है
अपने लिए तो ग़मों की रात ही जश्न बनी
जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं
इसीलिये सजदे में सर अब भी झुका रक्खा है
जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं
इसीलिये सजदे में सर अब भी झुका रक्खा है
गम की आदत है ये दिन रात भुला देता है
हम नहीं आयेंगे इसके झाँसे में
चराग दिल का यूँ भी जला रक्खा है
नाम वाले भी कभी गुमनाम ही हुआ करते हैं
ज़िन्दगी गुमनामी से भी बढ़ कर है
ये गुमाँ खुद को पिला रक्खा है
शबे-गम की क्यूँ सहर होती नहीं
तारे गिनते गिनते रात भी कटे
इस उम्मीद पर दिल को बहला रक्खा है
अपने लिए तो ग़मों की रात ही जश्न बनी
जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं
इसीलिये सजदे में सर अब भी झुका रक्खा है
बेहतरीन ग़ज़ल, सुन्दर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंशबे-गम की क्यूँ सहर होती नहीं
जवाब देंहटाएंतारे गिनते गिनते रात भी कटे
इस उम्मीद पर दिल को बहला रक्खा है ...
शबे गम की रात लंबी जरूर होती है पर कट जाती है ... दिल में उम्मीद रखनी जरूरी है ...
गम की आदत है ये दिन रात भुला देता है
जवाब देंहटाएंहम नहीं आयेंगे इसके झाँसे में
चराग दिल का यूँ भी जला रक्खा है
बहुत खूब.
वाह क्या खूब लिखा है आपने जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं सच तो है फिर वो जश्न चाहे दर्द दिल का ही क्यूँ न हो।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंअच्छी लाइनंे
जवाब देंहटाएंशब है तो सहर होगी
जवाब देंहटाएंखुशियों की लहर होगी.
गम के हजार मारे
सबकी ही नज़र होगी.
खूबसूरत एहसास.
शबे-गम की क्यूँ सहर होती नहीं
जवाब देंहटाएंतारे गिनते गिनते रात भी कटे
इस उम्मीद पर दिल को बहला रक्खा है
दिल को बहलाने को ग़ालिब ये ख़्याल अच्छा है ..
सार्थक सृजन, आभार.
जवाब देंहटाएंBhavapoorn sundar rachana sarthak abhivyakti abhaar ...
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