कैसे आई ये खिजाँ , दिल्लगी होती रही
तंग थी दिल की गली , रौशनी होती रही
करता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
दिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही
है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही
साथ चलते चार दिन जो , पर दिलों में वहशत रही
लौट कर आए नहीं , जेहन दिन वही ढोती रही
कैसे आई ये खिजाँ , दिल्लगी होती रही
तंग थी दिल की गली , रौशनी होती रही
तंग थी दिल की गली , रौशनी होती रही
करता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
दिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही
है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही
साथ चलते चार दिन जो , पर दिलों में वहशत रही
लौट कर आए नहीं , जेहन दिन वही ढोती रही
कैसे आई ये खिजाँ , दिल्लगी होती रही
तंग थी दिल की गली , रौशनी होती रही
शारदा जी,
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत अशआर....ये शेर बहुत पसंद आये....शुभकामनाये|
करता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
दिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही
है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही
है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
जवाब देंहटाएंपास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
जवाब देंहटाएंकैसे आई ये खिजाँ , दिल्लगी होती रही
जवाब देंहटाएंतंग थी दिल की गली , रौशनी होती रही
बहुत ही उम्दा गज़ल्……………भावों का सुन्दर चित्रण्।
गजल के सभी शेर एक से बढ़कर एक हैं!
जवाब देंहटाएंहै तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
जवाब देंहटाएंपास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही
Pooree rachana sundar hai,par ye panktiyan aprateem lageen!
बहतरीन गजल, सुन्दर भाव और लाजबाव प्रतुति।
जवाब देंहटाएंसभी शेर उम्दा हैँ । बहुत- बहुत शुभकामनायेँ।
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आपका स्वागत करती तथा आपकी राह निहारती ये गजल ........अश्को को वो अपने छुपाती हैँ।
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करता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
जवाब देंहटाएंदिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही
वाह सुन्दर गज़ल। बधाई।
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
जवाब देंहटाएंबहत खूबसूरत ग़ज़ल.हर एक शेर बेमिसाल.
जवाब देंहटाएंलौट कर आए नहीं , जेहन दिन वही ढोती रही ?
जवाब देंहटाएंथोडा इसे समझाइये या फिर दुरुस्त कीजिये बाकी सब बढिया है !
है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
जवाब देंहटाएंपास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही
बेहतरीन...शारदा जी वाह...
नीरज
साथ चलते चार दिन जो , सँगे-दिल वहशत रही
जवाब देंहटाएंलौट कर आए नहीं , जेहन दिन वही ढोती रही
अली साहेब , जो चार दिन यानि थोड़ा लम्बा वक्त साथ दे सकते थे ,उस वक्त दिल के साथ जाने क्या वहशत सी थी , और वो दिन दुबारा पलट कर नहीं आए मगर जेहन यानि अंतर्मन उन्हीं दिनों को ढो रहा है ....इसी लिये तो खिजां है । उम्मीद है मैंने जो लिखा है साफ़ कर पाई हूँ ...शुक्रिया
bahut khoobsoorat gazal hai Sharda jee........
जवाब देंहटाएं5/10
जवाब देंहटाएंखुबसूरत ग़ज़ल है
शेर बढ़िया हैं.
शनिवार के चर्चा मंच पर इसको चर्चा में लगा दिया गया है!
जवाब देंहटाएंकरता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
जवाब देंहटाएंदिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही
एक एक शेर दिल की कहानी कह रहा है...दिल से निकली बात दिल तक.
है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
जवाब देंहटाएंपास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही
सुन्दर है.
करता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
जवाब देंहटाएंदिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही
बहुत सुंदर ख्यालों का जाल......
है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
जवाब देंहटाएंपास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही
बहुत उम्दा रचना है...हर शेर बेहतरीन.
है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
जवाब देंहटाएंपास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही ..
प्रेम में रुसवाई तो होती ही है ... पर फिर भी मज़ा आता है .. अच्छा लिखा है .
बहुत खूबसूरत गज़ल ..
जवाब देंहटाएंहै तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
जवाब देंहटाएंपास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही
बेहतरीन...
शारदा जी,
जवाब देंहटाएंमन के असीम भावों से सराबोर है आपकी ग़ज़ल !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
अच्छी ग़ज़ल , बधाई।
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