चुन लाये कुछ उजली किरणें
हुस्न के माथे ताज सजे फ़िर
जन्मों का सारा दुःख भूले
रात की चाँदनी वफ़ा के दम पर
दिन का सेहरा इश्क के सर पर
इश्क जो चढ़ता सूरज सा ही
कैसे अपने आप को भूले
वफ़ा की चाहत है सबको ही
चाहत है पर वफ़ा नहीं है
सच्चा है पर सगा नहीं है
अपनी हस्ती आप ही भूले
सही लिखा आपने ,आज रिश्ते तो है ..लेकिन अपनापन कहीं खो गया है...!सब रिश्ते सच्चे है,पर सगे कतई नहीं है...
जवाब देंहटाएंबहुत खुब। खासकर आपकी ये लाईन "इश्क जो चढ़ता सूरज सा ही
जवाब देंहटाएंकैसे अपने आप को भूले" बहुत हि अच्छी लगी। आभार प्रकट करता हूं "इश्क वफ़ा की सीढियाँ चढ़ कर" के लिए।
chahat hai par vafa nahin hai.............
जवाब देंहटाएंsaccha hai par saga nahin hai ............
kya baat hai !
badhai!
सुन्दर रचना शारदा जी...
जवाब देंहटाएंनीरज
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंयुगों-युगों से चाहत और वफा,
जवाब देंहटाएंसंग-संग रहे हैं,
हुस्न-इश्क दोनों जीवन के,
बेहतर अंग रहे हैं।
किन्तु आजकल की चाहत में,
सच्ची वफा नही है,
इसीलिए तो हरे-भरे,
गुलशन बदरंग रहें हैं।।
सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंक्या लिखा है आपने ..... बहुत सुन्दर
"वफ़ा की चाहत है सबको ही
चाहत है पर वफ़ा नहीं है"
रात की चाँदनी वफ़ा के दम पर
जवाब देंहटाएंदिन का सेहरा इश्क के सर पर
इश्क जो चढ़ता सूरज सा ही
कैसे अपने आप को भूले
dilchasp......
nice blog
जवाब देंहटाएंसरल ढंग से सुंदर कविता लिखने में आपका जवाब नहीं।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
रात की चाँदनी वफ़ा के दम पर
जवाब देंहटाएंदिन का सेहरा इश्क के सर पर
बहुत खूब फरमाया आपने
श्याम सखा श्याम
http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें
सच्चा है पर सगा नहीं है
जवाब देंहटाएंअपनी हस्ती आप ही भूले ,,
यह लाइने आज के समय में जीवन के बहुत करीब हैं ,अगर सगे रिश्ते नहीं मिलते तो हमें दुखी न होकर सच्चे रिश्तों को ही पकड़ कर जीवन में सार्थकता लानी चाहिए |
एक अच्छी रचना के लिए बधाई
रात की चाँदनी वफ़ा के दम पर
जवाब देंहटाएंदिन का सेहरा इश्क के सर पर
इश्क जो चढ़ता सूरज सा ही
कैसे अपने आप को भूले
ye line to gazab dha gayi
रचना अच्छी लगी.......बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंएक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....
वफ़ा की चाहत है सबको ही
जवाब देंहटाएंचाहत है पर वफ़ा नहीं है
सच्चा है पर सगा नहीं है
अपनी हस्ती आप ही भूले
बहुत सुन्दर तरीके से आपने जिन्दगी के हालत को बयान किया है .. आपकी लेखनी को प्रणाम
प्रदीप मनोरिया
09425132060