भीड़ के इस रेले में , जैसे कोई अपना न था
तन्हाई ले है आई ये हमें किस मोड़ पर
खुली आँखों की इस नीँद में , अब कोई सपना न था
चाँद माथे रख के टिकुली आ गया दहलीज पर
उसके सिवा अब रात का , अपना कोई खुदा न था
या खुदा इम्तिहाँ न ले , तू मेरा इस मोड़ पर
सिलसिला ये रात दिन का , जख्मों से जुदा न था
चाँद माथे रख के टिकुली आ गया दहलीज पर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
"दुनिया के मेले यूँ गए हमको तन्हाँ छोड़ कर
जवाब देंहटाएंभीड़ के इस रेले में , जैसे कोई अपना न था"
सुन्दर अभिव्यक्ति।
आभार।
चाँद माथे रख के टिकुली आ गया दहलीज पर
जवाब देंहटाएंउसके सिवा अब रात का , अपना कोई खुदा न था
waah
waah
har she'r umda lekin ye toh seedha kaleje me utar gaya....
barmbar badhaai !
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िय, भावों को एक धागे में समेट लिया है
जवाब देंहटाएं----
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
चाँद माथे रख के टिकुली आ गया दहलीज पर
जवाब देंहटाएंउसके सिवा अब रात का , अपना कोई खुदा न था
bahut pyara likha hai, badhai.
या खुदा इम्तिहाँ न ले , तू मेरा इस मोड़ पर
जवाब देंहटाएंसिलसिला ये रात दिन का , जख्मों से जुदा न था
बहुत ही बढ़िय, बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
बहुत अच्छा है.
जवाब देंहटाएंहम इस विषय में ज्यादा तो नहीं जानते लेकिन जितना भी जानते है,
काफी अच्छा लिखा है. आपका ब्लॉग पढ़ कर मान प्रसन्न हो गया
धन्याद
आप ऐसे ही लिखती रहे और हम आपकी रचनाओं को यूँ ही पढ़ते रहें...................
चाँद माथे रख के टिकुली आ गया दहलीज पर
जवाब देंहटाएंउसके सिवा अब रात का , अपना कोई खुदा न था
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई