बिगड़ा हुआ साज है और ज़िन्दगी बजानी है सँवरे या न सँवरे ये , कोई धुन तो बनानी है
ज़िन्दगी तो यूँ अक्सर बहुत बोलती है
रातों को जगाती है ,
बतियाती है के कोई बात तो बनानी है
दिखता नहीं भले कुछ भी
इक समन्दर है उम्र के काँधे पर ,
पार उतरने को कश्ती तो बनानी है
जो तुमने मानी होती कोई बात ,
तो हम भी सयाने होते
हालात के मारे हुए और ज़िन्दगी तो सजानी है
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