मंगलवार, 2 अगस्त 2011

कौन खुशियों का तलबगार नहीं

कैसे कह दें के है इन्तिज़ार नहीं
कौन खुशियों का तलबगार नहीं

दिल वो बस्ती है जो दिन रात सजा करती है
न कहना के है कोई खरीदार नहीं

तुम्हीं तो छोड़ गई हो ऐ जिन्दगी यहाँ मुझको
तुम्हें गुरेज है हमसे प्यार नहीं

बदल गए हैं मायने कितने ही
तन्हाई भी है क्या गमे-यार नहीं

कर लेते हम हालात से समझौता
जीत है ये भी , है अपनी हार नहीं

उसकी बातों में बला का जादू है
यूँ ही दुनिया का दारोमदार नहीं

18 टिप्‍पणियां:

  1. khoobsurat aur asardar gazal... tanhai ka bhi game yar nahi hona.. sundar prayog hai ...

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  2. तुम्हीं तो छोड़ गई हो ऐ जिन्दगी यहाँ मुझको
    तुम्हें गुरेज है हमसे प्यार नहीं
    बहुत खुबसूरत ग़ज़ल मुबारक हो .....

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  3. वाह बहुत ही सुन्दर गज़ल लिखी है।

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  4. बहुत सुंदर

    कर लेते हम हालात से समझौता
    जीत है ये भी , है अपनी हार नहीं

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  5. jeene ke dhang sikhane wali ravhna kabil-e-tareef hai..
    Samjhauta ko aksar log haar samajh lete hain jab ki agar insaanon ki jijiwisha ko dekhen to we samjaute bhi apni bhavishya ko surakshit karne ke liye hi karte hain.. fir kaisi jeet aur kaisi haar...

    Aakarshan

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  6. बहुत खूबसूरत अशआरों के साथ लिखी गी बढ़िया ग़ज़ल!

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  7. कैसे कह दें के है इन्तिज़ार नहीं
    कौन खुशियों का तलबगार नहीं

    दिल वो बस्ती है जो दिन रात सजा करती है
    न कहना के है कोई खरीदार नहीं
    Kya gazab likha hai!

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  8. कर लेते हम हालात से समझौता
    जीत है ये भी , है अपनी हार नहीं
    वाह, क्या बात कही है!
    समझौता हम करते ही हैं रुकावटें दूर करने के लिए, उसमें हार तो नहीं ही होती।

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  9. दिल वो बस्ती है जो दिन रात सजा करती है
    न कहना के है कोई खरीदार नहीं

    Khoob.... Bahut Sunder rachna

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  10. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 08-08-2011 को चर्चामंच http://charchamanch.blogspot.com/ पर सोमवासरीय चर्चा में भी होगी। सूचनार्थ

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  11. वाह बहुत ही सुन्दर गज़ल लिखी है।

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  12. बहुत खूबसूरत गज़ल ..तन्हाई ही गमेयार होती है ..

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  13. bahut hi sunder lafjon main likhi shaandaar gajal.badhaai aapko.

    "ब्लोगर्स मीट वीकली {३}" के मंच पर सभी ब्लोगर्स को जोड़ने के लिए एक प्रयास किया गया है /आप वहां आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/हमारी कामना है कि आप हिंदी की सेवा यूं ही करते रहें। सोमवार ०८/०८/११ को
    ब्लॉगर्स मीट वीकली में आप सादर आमंत्रित हैं।

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  14. बहुत खुब कहा है आपने ....आभार

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  15. वाह! बहुत ही खूबसूरत मतले से शुरुआत की है.

    "कैसे कह दें के है इन्तिज़ार नहीं/कौन खुशियों का तलबगार नहीं"
    वाह. जितनी भी तारीफ करूँ कम होगी. बहुत प्यारा मतला है.

    सभी अशआर खूबसूरत हैं..लेकिन,

    "दिल वो बस्ती है जो दिन रात सजा करती है/न कहना के है कोई खरीदार नहीं"
    बहुत खूबसूरत लगा...

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं