काँटों पे सोना पड़ा
फूलों को रोना पड़ा
दिल की लगी देखो
नींदों को खोना पड़ा
सफर लम्हों का है
सदियों को ढोना पड़ा
दीदारे-खुदा के लिये
हस्ती को खोना पड़ा
जन्मों का मैला मन
असुँअन से धोना पड़ा
गँगा की पावन लहर
आस का दोना पड़ा
किसकी हथेली पे जाँ
बुत किसे होना पड़ा
फूलों को रोना पड़ा
दिल की लगी देखो
नींदों को खोना पड़ा
सफर लम्हों का है
सदियों को ढोना पड़ा
दीदारे-खुदा के लिये
हस्ती को खोना पड़ा
जन्मों का मैला मन
असुँअन से धोना पड़ा
गँगा की पावन लहर
आस का दोना पड़ा
किसकी हथेली पे जाँ
बुत किसे होना पड़ा




12 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर.
नई पोस्ट : सृष्टि का नियंता : स्त्री या पुरुष
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन १८ अप्रैल का दिन आज़ादी के परवानों के नाम - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (19-04-2014) को ""फिर लौटोगे तुम यहाँ, लेकर रूप नवीन" (चर्चा मंच-1587) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut sundar .
bahut sundar .
कल 20/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
सुन्दर रचना। सादर धन्यवाद।।
नई कड़ियाँ : शहद ( मधु ) के लाभ और गुण।
BidVertiser ( बिडवरटाइजर ) से संभव है हिन्दी ब्लॉग और वेबसाइट से कमाई
शुभ प्रभात
प्यारी कृति
भा गई
सादर
सुन्दर .....
bahut sundar ....
आपके अहसासो ने कमाल कर दिया आज फिर एक कविता को जन्म दे दिया………हार्दिक आभार्।
Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ….अब आंगन में फुदकती गौरैया नजर नहीं आती
दीदारे-खुदा के लिये
हस्ती को खोना पड़ा
बहुत सुन्दर शेर .... बहुत सुन्दर ग़ज़ल ....
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