शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

बुत किसे होना पड़ा

काँटों पे सोना पड़ा 
फूलों को रोना पड़ा 

दिल की लगी देखो 
नींदों को खोना पड़ा 

सफर लम्हों का है 
सदियों को ढोना पड़ा 

दीदारे-खुदा के लिये 
हस्ती को खोना पड़ा 

जन्मों का मैला मन 
असुँअन से धोना पड़ा 

गँगा की पावन लहर 
आस का दोना पड़ा 

किसकी हथेली पे जाँ 
बुत किसे होना पड़ा 


12 टिप्‍पणियां:

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर.
नई पोस्ट : सृष्टि का नियंता : स्त्री या पुरुष

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन १८ अप्रैल का दिन आज़ादी के परवानों के नाम - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (19-04-2014) को ""फिर लौटोगे तुम यहाँ, लेकर रूप नवीन" (चर्चा मंच-1587) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Shalini kaushik ने कहा…

bahut sundar .

Shalini kaushik ने कहा…

bahut sundar .

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 20/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !

HARSHVARDHAN ने कहा…

सुन्दर रचना। सादर धन्यवाद।।

नई कड़ियाँ : शहद ( मधु ) के लाभ और गुण।

BidVertiser ( बिडवरटाइजर ) से संभव है हिन्दी ब्लॉग और वेबसाइट से कमाई

yashoda Agrawal ने कहा…

शुभ प्रभात
प्यारी कृति
भा गई
सादर

कौशल लाल ने कहा…

सुन्दर .....

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut sundar ....

संजय भास्‍कर ने कहा…

आपके अहसासो ने कमाल कर दिया आज फिर एक कविता को जन्म दे दिया………हार्दिक आभार्।

Recent Post शब्दों की मुस्कराहट पर ….अब आंगन में फुदकती गौरैया नजर नहीं आती

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

दीदारे-खुदा के लिये
हस्ती को खोना पड़ा

बहुत सुन्दर शेर .... बहुत सुन्दर ग़ज़ल ....