हम तो तुम्हारी पलकों के ख़्वाबों में भी रह लेते
तुम जो आँखों को तरेरोगे तो अपना क्या होगा
ख़्वाब तो आसमाँ में उड़ाते हैं
तुम जो ज़मीं पर ही उतारोगे तो अपना क्या होगा
इरादों में हौसलों की चमक होती है
तुम जो हकीकत को नकारोगे तो अपना क्या होगा
बन्जारों की तरह तम्बू नहीं ताना हमने
दिल की बस्ती को उजाड़ोगे तो अपना क्या होगा
हम तो तुम्हारी पलकों के ख़्वाबों में भी रह लेते
तुम जो आँखों को तरेरोगे तो अपना क्या होगा
तुम जो आँखों को तरेरोगे तो अपना क्या होगा
ख़्वाब तो आसमाँ में उड़ाते हैं
तुम जो ज़मीं पर ही उतारोगे तो अपना क्या होगा
इरादों में हौसलों की चमक होती है
तुम जो हकीकत को नकारोगे तो अपना क्या होगा
बन्जारों की तरह तम्बू नहीं ताना हमने
दिल की बस्ती को उजाड़ोगे तो अपना क्या होगा
हम तो तुम्हारी पलकों के ख़्वाबों में भी रह लेते
तुम जो आँखों को तरेरोगे तो अपना क्या होगा




3 टिप्पणियां:
बन्जारों की तरह तम्बू नहीं ताना हमने
दिल की बस्ती को उजाड़ोगे तो अपना क्या होगा
वह सुन्दर रचना
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (02.05.2014) को "क्यों गाती हो कोयल " (चर्चा अंक-1600)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
छोड़ आई थी जो पीछे , वो अल्हड़ सी जवानी
जागी हैं वही नादानियाँ , देखो तो इधर फिर से
सुन्दर, वक्त वक्त की बात है
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