गुरुवार, 1 मई 2014

तो अपना क्या होगा

हम तो तुम्हारी पलकों के ख़्वाबों में भी रह लेते 
तुम जो आँखों को तरेरोगे तो अपना क्या होगा 

ख़्वाब तो आसमाँ में उड़ाते हैं 
तुम जो ज़मीं पर ही उतारोगे तो अपना क्या होगा 

इरादों में हौसलों की चमक होती है 
तुम जो हकीकत को नकारोगे तो अपना क्या होगा 

बन्जारों की तरह तम्बू नहीं ताना हमने 
दिल की बस्ती को उजाड़ोगे तो अपना क्या होगा 

हम तो तुम्हारी पलकों के ख़्वाबों में भी रह लेते 
तुम जो आँखों को तरेरोगे तो अपना क्या होगा 


3 टिप्‍पणियां:

  1. बन्जारों की तरह तम्बू नहीं ताना हमने
    दिल की बस्ती को उजाड़ोगे तो अपना क्या होगा

    वह सुन्दर रचना

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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (02.05.2014) को "क्यों गाती हो कोयल " (चर्चा अंक-1600)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, वहाँ पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।

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  3. छोड़ आई थी जो पीछे , वो अल्हड़ सी जवानी
    जागी हैं वही नादानियाँ , देखो तो इधर फिर से
    सुन्दर, वक्त वक्त की बात है

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं