कर रहा इन्कार आँसू भी , आँख में आने के लिये
चुक गया दरिया भी , आतिशे-गम बुझाने के लिये
हो गये हैं ढीठ से , चुप से दिखाने के लिये
मार कर पत्थर तो देखो , हमको हिलाने के लिये
सैय्याद ने ले लिये पर , गिरवी दिखाने के लिये
उम्मीद पर चलते रहो , बेपरों के हौसले आजमाने के लिये
रख छोड़े थे ताक पर , कितने ही नगमे भुलाने के लिये
पिटारी खोल कर बैठे हैं , वही लम्हे भुनाने के लिये
चुक गया दरिया भी , आतिशे-गम बुझाने के लिये
हो गये हैं ढीठ से , चुप से दिखाने के लिये
मार कर पत्थर तो देखो , हमको हिलाने के लिये
सैय्याद ने ले लिये पर , गिरवी दिखाने के लिये
उम्मीद पर चलते रहो , बेपरों के हौसले आजमाने के लिये
रख छोड़े थे ताक पर , कितने ही नगमे भुलाने के लिये
पिटारी खोल कर बैठे हैं , वही लम्हे भुनाने के लिये
लौट आये हैं वही दिन रात , हमको सताने के लिये
पुराने फिर वही किस्से , दिले-नादाँ दुखाने के लिये
घड़ों पानी तो डाला था , जख्मे-दिल सहलाने के लिये
गढ़े मुर्दे छेड़े किसने , चिंगारी यूँ सुलगाने के लिये
हो गये हैं ढीठ से ... चुप से दिखाने के लिये
जवाब देंहटाएंमार कर पत्थर तो देखो ... हमको हिलाने के लिये
सच कहा आज सबका यही हाल तो है……………सभी शेर ज़िन्दगी की हकीकत बयां कर रहे हैं।
आने से जब आँख में, अश्रु करें इनकार।
जवाब देंहटाएंतब समझो मन में भरा, दुःखों का भण्डार।।
सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंएहसासों को बखूबी लिखा है ...एक शेर और जोड़िए तो गज़ल मुकम्मल हो ..मैंने सुना है की गज़ल में पांच शेर होते हैं ...
जवाब देंहटाएंहर शेर गज़ब का है ..
वा ! बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद संगीता जी , आपकी सलाह मान कर एक की जगह दो और शेर जड़ दिए हैं , अब आप बताइये कि क्या शक्ल निकल कर आई है ।
जवाब देंहटाएंआप सब टिप्पणीकर्ताओं को मैं यहीं धन्यवाद दे देती हूँ , आप सब निश्छल मन से टिप्पणी करते हैं , जिसके लिये मैं आपकी बहुत बहुत आभारी हूँ , मैं बहुत ज्यादा वक्त ब्लॉग को नहीं दे पाती , जो भी वक्त मिलता है उस में जो भी पढ़ पाऊँ ..और अच्छा लगे तो टिप्पणी जरुर करती हूँ , न पढ़ पाऊँ तो उसे ऊपर वाले की मर्जी समझ कर ..मैं इन बातों से विचलित नहीं होती । अगर ब्लोग्स पढने में रह जाओ तो लिखने में कमी आ जाती है ...यानि अपनी रचनात्मकता पर असर पड़ता है ..तो किसी किसी दिन नोट पैड और पेन के साथ , किसी किसी दिन मेहमान और समाज के साथ।
बहुत खूबसूरत रचना....
जवाब देंहटाएंलौट आये हैं वही दिन रात...हमको सताने के लिये
जवाब देंहटाएंपुराने फिर वही किस्से... दिले-नादाँ दुखाने के लिये
bahut khub muvarak ho
आप बहुत दर्द भरा लिखती हैं और उम्दा लिखती हैं. हर शेर लाजवाब है. बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे शेर पेश किए हैं...बधाई.
जवाब देंहटाएंहो गये हैं ढीठ से ... चुप से दिखाने के लिये
जवाब देंहटाएंमार कर पत्थर तो देखो ... हमको हिलाने के लिये
वाह...वाह...वाह....क्या बात कही....
हर शेर सुन्दर...बहुतही सुन्दर रचना...
बहुत सुंदर ग़ज़ल .... हर शे' र अपने आप में नायाब हैं....
जवाब देंहटाएंकर रहा इन्कार आँसू भी... आँख में आने के लिये
जवाब देंहटाएंचुक गया दरिया भी ...आतिशे-गम बुझाने के लिये
बहुतही सुन्दर रचना
kyaa kahein...??
जवाब देंहटाएंto come to ur blog was a nice experience.....
जवाब देंहटाएंsundar rachnayen hain:)
subhkamnayen....