मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

विष्वास को पानी देना

मेरे विष्वास को पानी देना 
अरमान को चुनर धानी देना 

ज़िन्दगी कुछ भी नहीं , मुहब्बत के बिना 
मेरे अलफ़ाज़ को कहानी देना 

जिधर भी देखूँ तुम ही तुम हो 
अहसास को हकीकत ज़मीनी देना 

कहीं न कहीं तो हो तुम 
मेरी आस को ज़िन्दगानी देना 

गुजर गये हैं मौसम कितने ही 
देरी ही सही , बहारों को रवानी देना 

शबे-इन्तिज़ार का कोई तो सिला 
सुबह हर हाल निशानी देना 

10 टिप्‍पणियां:

  1. गुजर गये हैं मौसम कितने ही
    देरी ही सही , बहारों को रवानी देना ...

    बहुत उम्दा भाव पूर्ण गजल ...

    आप भी फालोवर बने,,,,आभार शारदा जी,,,,
    Recent Post दिन हौले-हौले ढलता है,

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  2. ज़िन्दगी कुछ भी नहीं , मुहब्बत के बिना
    मेरे अलफ़ाज़ को कहानी देना

    बहुत खूब ... मुहब्बत तो अपने आप में जुबां होती है ... कहानी बन ही जाती है ...

    जिधर भी देखूँ तुम ही तुम हो
    अहसास को हकीकत ज़मीनी देना

    दिल के एहसास हकीकत में बदल जाए तो जीवन सफल हो जाता है ...

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  3. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति,आभार शारदा जी.

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  4. कहीं न कहीं तो हो तुम
    मेरी आस को ज़िन्दगानी देना.

    सुंदर अभिव्यक्ति.

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं