बुधवार, 1 जून 2016

सौदा खरा चाहिये

दिल के बदले दिल चाहिये
हमको सौदा खरा चाहिये

मुश्किल नहीं है बहुत
हमको रिश्ता सगा चाहिये

आहें ही बसती रहीं
दिल दुआ से भरा चाहिये

जी भर के रो लें मगर
तेरा काँधा जरा चाहिये

पतझड़ के मौसम में भी
दिल हमको खिला चाहिये 

लाइये , शेख जी लाइये 
हमको मौसम हरा चाहिये 


8 टिप्‍पणियां:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 02-06-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2361 में दिया जाएगा
धन्यवाद

Sonit Bopche ने कहा…

"जी भर के रो लें मगर
तेरा काँधा जरा चाहिये" ... वाह!

राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुंदर .
नई पोस्ट : हजारों गम हैं

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 06 जून 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

Satish Saxena ने कहा…

वाह , क्या बात है
दिल के बदले में दिल चाहिए .....

अभिव्यक्ति मेरी ने कहा…

यथार्थ जीवन की भावनात्मक आवश्यकताओं को प्रदर्शित करती एक वेहतरीन रचना। मुझे तो अच्छी लगी।

Himkar Shyam ने कहा…

बहुत ख़ूब। वाह।

Anupriya ने कहा…

बहुत सुंदर...