बुधवार, 5 फ़रवरी 2020

मजहब से ऊपर

हिन्दू होना या मुसलमाँ होना
मजहब से ऊपर है इन्साँ होना

वतन वतन है , जड़ें तेरी
मुश्किल है जमीँ से ज़ुदा होना

आदमी आदमी को सहता कब है
बहुत मुमकिन है ,हस्ती का गुमाँ होना

घर को साबुत रखने की कोशिश में
होना पड़ता है अना को फना होना

खून का रँग भी एक ही है
किसने समझा है दर्दे-अहसास का ज़ुबाँ होना

सुकूने-दिल ही सही राह का पता देगा
किसी की बाजू बनना ,काँधा होना

न दोहराना तारीखों को फिर से
मुश्किल है इतिहास को भुला पाना 

1 टिप्पणी:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 06 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं