आँखें भी उसी की हैं , मंज़र भी उसी के हैं
मरहम भी उसी के हैं , खँजर भी उसी के हैं
मेरे बोने से है क्या उगता
हरियाली भी उसी की है ,बंजर भी उसी के हैं
अब छोड़ दिया उसी पर सब
कठपुतली से नाचते हम , बंदर भी उसी के हैं
नसीबा लिखने वाला है वही
सिकंदर भी उसी के हैं , कलंदर भी उसी के हैं




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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं