और पार उतरना है
बिगड़ी हुई किश्ती है
धारों पे चलानी है
किश्ती की मरम्मत कर
तूफानों से बचानी है
नदिया का रुख देखो
किनारे सँग ले चलती है
विपरीत बहावों में
सँग -सँग भी तो बहना है
रस्सी को ढीला कर
मौका न गंवाना है
किश्ती का दम देखो
सागर से बहाना है
चंचल सी लहरों सँग
अठखेलियाँ करना है
उफनी हुई नदिया है
कब दूर किनारा है
उफनी हुई नदिया है
जवाब देंहटाएंऔर पार उतरना है
बिगड़ी हुई किश्ती है
धारों पे चलानी है
बहुत खूब।
अच्छा प्रयास है. लिखती रहें, तो और सुपठनीय पढ़ने को मिलेगा.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव!! बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा भाव आपकी कविता नजर आया । बेहतरीन रचना ।
जवाब देंहटाएंbehatarin lekhan ,... bahot hi khubsurat andaaj..
जवाब देंहटाएंarsh
बहुत सुन्दर रचना है. आगे बढ़ते जाना है.
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