सोमवार, 27 अप्रैल 2009

तेरी हर बात

तेरी हर बात बहाने से शुरू होती है
कैसे पायेगी सिला
उथली है , उड़ी होती है
ठगे से देखते हैं , पलकें झुकती भी नहीं

कैसे करते हम गिला
वफाओं का बाग़ मिलता नहीं

रूठा रूठा सा चमन
खुशबू का ख्वाब खिलता नहीं

तेरी हर बात बहाने से शुरू होती है
देखें किस ओर ले जाती है ये

तेरे झूठे बहानों में
मुझसे मिलने का सच भी तो छुपा होता है
तेरी हर बात....


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आवाज में

13 टिप्‍पणियां:

  1. हम सब एक विशाल लोकतांत्रिक देश के वासी हैं। ऐसे में हमारा फर्ज बनता है कि हम सब अपने-अपने मत का प्रयोग करें। क्या आप प्रथम दो चरणों में हुए मतदान में मतदाता रहे थे? यदि हाँ तो क्या आपने वोट दिया? यदि आपने मतदान किया तो बहुत ही अच्छी बात है और यदि नहीं किया था तो कम से कम आने वाले चरणों में लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करके इस गलती को सुधारने का प्रयास करें।
    यदि आप आने वाले चरणों में मतदाता हैं तो हर हालत में मतदान करें। यह हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अनिवार्य है। इससे देश को विकास की राह मिलेगी। मतदान अवश्य करिए और फिर देखिए कि जिस अव्यवस्था को आप कोसते हैं वह आपको सुधरती दिखेगी।
    मतदान स्वयं करें तथा अन्य लोगों को भी प्रेरित करें।
    धन्यवाद
    जागो वोटर जागो
    रायटोक्रेट कुमारेन्द्र

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  2. शारदा अरोरा जी।
    बात ने बहुत प्रभावित किया।
    बधाई।

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  3. तेरे झूठे बहानों में
    मुझसे मिलने का सच भी तो छुपा होता है ...शारदा जी मन की बात कविता के बहाने ...कुछ सच्चे फसाने...कुछ झूटे बहाने ... कविता के अंदाज मैं ..........अच्छी लगी ये कविता .मेरी बधाई स्वीकार करें

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  4. तेरी हर बात बहाने से शुरू होती है
    देखें किस ओर ले जाती है ये
    तेरे झूठे बहानों में
    मुझसे मिलने का सच भी तो छुपा होता है
    तेरी हर बात


    दिलचस्प.....एक अजीब सी रवानगी....

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  5. आप का ब्लाग बहुत अच्छा लगा।आप मेरे ब्लाग
    पर आएं,आप को यकीनन अच्छा लगेगा।

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं