सोमवार, 15 मार्च 2010

बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले

एक ही तर्ज़ पर दो गीत
1.
बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले
अरमाँ मचल कर पहलू में हिले

बदला है मौसम , दिल भी है सहमा
ले चल किसी अमराई तले

पत्ता न हिलता , गुम है हवा भी
तपती जमीं पर भी पुरवाई चले

झपकता है आँखें , कुम्हलाया शज़र भी
यादों के जब जब लग आता गले
2.
बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले
ज़माना हुआ कुछ अपनी कहे

धड़कन वही , हर गीत में वही
जमीं भी वही, आसमाँ भी वही
लडखडाये जो हम अजनबी से मिले

शिकवे नहीं और गिले भी नहीं
अपनी वफ़ा के सिले भी नहीं
पहचाने नहीं जाते ऐसी बेरुखी से मिले

बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले
ज़माना हुआ कुछ अपनी कहे

12 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
    ढेर सारी शुभकामनायें.

    संजय कुमार
    हरियाणा
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  2. बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले
    अरमाँ मचल कर पहलू में हिले..
    Ise gungunake padha...wah!

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  3. शिकवे नहीं और गिले भी नहीं
    अपनी वफ़ा के सिले भी नहीं
    पहचाने नहीं जाते ऐसी बेरुखी से मिले
    Sirf ek shabd...Wah!

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  4. पत्ता न हिलता , गुम है हवा भी
    तपती जमीं पर भी पुरवाई चले

    चलनी ही चाहिये अब तो पुरवाई
    सुन्दर

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  5. धड़कन वही , हर गीत में वही
    जमीं भी वही, आसमाँ भी वही
    लडखडाये जो हम अजनबी से मिले...
    वाह वाह....बहुत खूब शारदा जी.

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  6. बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले
    ज़माना हुआ कुछ अपनी कहे

    बहुत सुन्दर.

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  7. aadarniya sharda ji
    bahut hi behatarin va lazvab rachana hai...
    धड़कन वही , हर गीत में वही
    जमीं भी वही, आसमाँ भी वही
    लडखडाये जो हम अजनबी से मिले
    badahai.......
    poonam

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  8. "Thapak kaunsi " behad sundar hai, lekin wahanka comment box nahi khul raha!

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं