आ बैठे निशाँ भी चेहरे पर
रग-रग में धूप समाई न
हम वादा कर के भूल गए
खुद से भी हुई समाई न
क्यूँ जाते हैं उन गलियों में
पीछे छूटीं , हुईं पराई न
ठहरा है सूरज सर पर ही
चन्दा की बारी आई न
सरकी न धूप , रुका मन्जर
आशा से हुई सगाई न
न कोई नींद , न कोई छलाँग
पुल सी कोई भरपाई न
दर्द है तो है गमे-तन्हाई भी
काँटें हैं ! क्या पैर में बिवाई न
दर्द है तो है गमे-तन्हाई भी
जवाब देंहटाएंकाँटें हैं ! क्या पैर में बिवाई न
ओह! बहुत दर्द भरा है……………सुन्दर भावाव्यक्ति।
bahut khub........:)
जवाब देंहटाएंkya kahun, samajh nahi pa raha...bas ek pyari se rachna hai, yahi laga........
शारदा जी, जीवन के विभिन्न रंगों को आपने अपने काव्य में बखूबी उतार दिया। बधाई।
जवाब देंहटाएं---------
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
सांपों को दूध पिलाना पुण्य का काम है ?
vah ji vah.
जवाब देंहटाएंkya baat hai.
न कोई नींद , न कोई छलाँग
जवाब देंहटाएंपुल सी कोई भरपाई न
बहुत खूब.....
शारदा जी ,बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंठहरा है सूरज सर पर ही
चन्दा की बारी आई न
वाह !
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी
विचार
गहरे भाव ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआज हमें ज़ाकिर अली रजनीश से सहमत मानियेगा !
जवाब देंहटाएंशारदा जी,
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....
बहुत गहरी बातें जीवन के अनेक रंगों से सराबोर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbahut achcha likhi hain.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंदर्द है तो है गमे-तन्हाई भी
जवाब देंहटाएंकाँटें हैं ! क्या पैर में बिवाई न
शारदा जी, बहुत अच्छा लिखा है....
सुंदर अभिव्यक्ति
आदरणीया शारदा अरोरा जी
जवाब देंहटाएंसादर अभिवादन !
अच्छी रचना है ।
आ बैठे निशाँ भी चेहरे पर
रग-रग में धूप समाई न
बहुत ख़ूब !
हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार