गुरुवार, 31 मार्च 2011

आशिक का ही मुहँ देखा किये

जिन्दगी भर आशिक का ही मुहँ देखा किये
शेरों और गजलों में हम जिन्दा रहे


हर कदम पर खाई थी रुसवाई थी
गिर गिर कर उठे हम डूबते उतराते रहे

जवाकुसुमों का अपना क्या रँग और क्या है महक
अपनी खुशबू से बेखबर उड़ते रहे खोते रहे


बेलों का अपना है क्या वजूद
तनों से लिपटे रहे सहारे को लड़खड़ाते रहे



उसके चेहरे का रँग ही सजता रहा
अपनी तन्हाईयों से हम घबराते रहे

जिन्दगी भर आशिक का ही मुहँ देखा किये
शेरों और गजलों में हम जिन्दा रहे



यहाँ क्लिक कर के मेरी आवाज में सुन सकते हैं .....
aashik ka hi muhn.wav11401K Scan and download

16 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

जवाकुसुमों का अपना क्या रँग और क्या है महक

अपनी खुशबू से बेखबर उड़ते रहे खोते रहे

बेलों का अपना है क्या वजूद

तनों से लिपटे रहे सहारे को लड़खड़ाते रहे

वाह बेहद उम्दा ख्याल सजाये हैं।

बेनामी ने कहा…

वाह शारदा जी.....शानदार ग़ज़ल है ......

मेरे भाव ने कहा…

बेलों का अपना है क्या वजूद


तनों से लिपटे रहे सहारे को लड़खड़ाते रहे


उसके चेहरे का रँग ही सजता रहा


अपनी तन्हाईयों से हम घबराते रहे
....

khoobsoorat gajal

devendra gautam ने कहा…

हर शेर गहरे भाव लिए हुए.....बधाई!

संध्या शर्मा ने कहा…

बेलों का अपना है क्या वजूद


तनों से लिपटे रहे सहारे को लड़खड़ाते रहे


उसके चेहरे का रँग ही सजता रहा


अपनी तन्हाईयों से हम घबराते रहे

बहुत खूबसूरत रचना... हर पंक्ति लाजवाब.... आभार

Amrita Tanmay ने कहा…

Behad khubsurat...gahre arthon ko samete huye ....achchhi rachana

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत बढ़िया .......हर शेर में कमाल के भाव हैं.... बेहतरीन ग़ज़ल

Sunil Kumar ने कहा…

जिन्दगी भर आशिक का ही मुहँ देखा किये
शेरों और गजलों में हम जिन्दा रहे|
बहुत ही खुबसूरत शेर, दाद का मोहताज नहीं पर दिल ने कहा बहुत खूब....

रचना दीक्षित ने कहा…

बहुत खूबसूरत शेरों से सजी गज़ल. उम्दा ख्याल. बधाई.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

हर कदम पर खाई थी रुसवाई थी
गिर गिर कर उठे हम डूबते उतराते रहे

बहुत अच्छे भाव प्रस्तुत किए हैं.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

हर कदम पर खाई थी रुसवाई थी
गिर गिर कर उठे हम डूबते उतराते रहे ...

वाह क्या बात लिखी है ...इस डूबने और उभरने में ही तो मज़ा है ...

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत सुन्दर ग़ज़ल| धन्यवाद|

आकर्षण गिरि ने कहा…

जिन्दगी भर आशिक का ही मुहँ देखा किये
शेरों और गजलों में हम जिन्दा रहे

bahut badhiya....
Aakarshan

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

हर कदम पर खाई थी रुसवाई थी
गिर गिर कर उठे हम डूबते उतराते रहे ...

सुंदर नज़्म......!!

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

जवाकुसुमों का अपना क्या रँग और क्या है महक
अपनी खुशबू से बेखबर उड़ते रहे खोते रहे

वाह, मनमोहक रचना है।

ज्योति सिंह ने कहा…

उसके चेहरे का रँग ही सजता रहा


अपनी तन्हाईयों से हम घबराते रहे
bahut hi sundar .