ये मेरा दिल जो तुमने तोड़ा है
भरी दुनिया में तन्हा छोड़ा है
काँच का कोई खिलौना हूँ मैं शायद
खेल कर हाथ से जो छोड़ा है
ढह जाती है लकड़ी दीमक लगी
इश्क ने ऐसा घुना मरोड़ा है
साथी भी मिले साथ भी मिले
किस्मत को जो मन्जूर थोड़ा है
ढल तो जाते हैं चाहतों के समन्दर
ये तुमने हमें कहाँ लाके छोड़ा है
शिकायत तो नहीं गुले-गुलशन से
वीरानी-ए-सहरा ने हमें तोड़ा है
खता कोई तो होगी अपनी भी
मेहरबानियों ने क्यूँ मुँह मोड़ा है
ये वादियाँ तो बड़ी सुहानी थीं
ये कैसे मोड़ ने तोड़ा -मरोड़ा है
apki ye pyari kavita padhi to apko vote kar diya parikalpana par.
जवाब देंहटाएंकाँच का कोई खिलौना हूँ मैं शायद
जवाब देंहटाएंखेल कर हाथ से जो छोड़ा है
बहुत सुंदर ग़ज़ल।
सुंदर और अर्थपूर्ण..सुन्दर प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएं...भावपूर्ण ग़ज़ल...बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंखता कोई तो होगी अपनी भी
जवाब देंहटाएंमेहरबानियों ने क्यूँ मुँह मोड़ा है
बहुत सुंदर....
वाह..
अनु
बहुत सुंदर गज़ल ....
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