क्या कहिए अब इस हालत में ,
अब कौन समझने वाला है
कश्ती है बीच समन्दर में
तूफाँ से पड़ा यूँ पाला है
हम ऐसे नहीं थे हरगिज़ भी
हालात ने हमको ढ़ाला है
कह देतीं आँखें सब कुछ ही
जुबाँ पर बेशक इक ताला है
लौट आते परिन्दे जा जा कर
घर में कोई चाहने वाला है
बाँधने से नहीं बँधता कोई
आशना क्या गड़बड़ झाला है
ज़ेहन में उग आते काँटे
ये रोग हमारा पाला है
घूम आते हैं अक्सर हम भी
वक्त की तलियों में छाला है
नजरें फेरे हम जाप रहे
बाँधें आसों की माला है
अब कौन समझने वाला है
कश्ती है बीच समन्दर में
तूफाँ से पड़ा यूँ पाला है
हम ऐसे नहीं थे हरगिज़ भी
हालात ने हमको ढ़ाला है
कह देतीं आँखें सब कुछ ही
जुबाँ पर बेशक इक ताला है
लौट आते परिन्दे जा जा कर
घर में कोई चाहने वाला है
बाँधने से नहीं बँधता कोई
आशना क्या गड़बड़ झाला है
ज़ेहन में उग आते काँटे
ये रोग हमारा पाला है
घूम आते हैं अक्सर हम भी
वक्त की तलियों में छाला है
नजरें फेरे हम जाप रहे
बाँधें आसों की माला है
लौट आते परिन्दे जा जा कर
जवाब देंहटाएंघर में कोई चाहने वाला है
Bahut Sunder
नजरें फेरे हम जाप रहे
जवाब देंहटाएंबाँधें आसों की माला है
वह! बहुत बढिया रचना है।बधाई।
हम ऐसे नहीं थे हरगिज़ भी
जवाब देंहटाएंहालात ने हमको ढ़ाला है
....बहुत खूब! बेहतरीन प्रस्तुति...
हम ऐसे नहीं थे हरगिज़ भी
जवाब देंहटाएंहालात ने हमको ढ़ाला है
कह देतीं आँखें सब कुछ ही
जुबाँ पर बेशक इक ताला है
Kamaal kee panktiyan hain!
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंइस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
हर पंक्ति बनी अर्थपूर्ण ,
जवाब देंहटाएंआपने यूं शब्दों को ढाला है ,
बहुत बहुत शुभकामनाएं जी
बहुत सुंदर शारदा जी.........
जवाब देंहटाएंकोमल एहसास......
अनु
लौट आते परिन्दे जा जा कर
जवाब देंहटाएंघर में कोई चाहने वाला है
रचना बेहतरीन है।
हर पंक्ति लाजवाब।
sundar prastuti
जवाब देंहटाएंसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना हुई है शारदा जी!..बधाई!
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