मंगलवार, 12 नवंबर 2013

दिल ही चाहिये मगर

अब के मिलेंगे तुझसे तो ,दिल रख के आयेंगे घर 
दिल काँच का जरुर है , खिलौना नहीं मगर 

अकेले दम पर चलती नहीं दुनिया , हमने देखा है 
मजबूर हैं हम , नुमायश नहीं मगर  

ख़्वाब कितने महँगे हैं , बाज़ार में बिकते नहीं 
नक्दे-जाँ के बदले , दिल ही चाहिये मगर 

सवाल करना मना है , सितम तो देखिये भला 
अपना भी उसे कैसे कहें ,पास होके भी दूर ही खड़ा है मगर 

13 टिप्‍पणियां:

Rajeev Kumar Jha ने कहा…

बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : फिर वो दिन

Rajeev Kumar Jha ने कहा…

इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 14/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 43 पर.
आप भी पधारें, सादर ....

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत उम्दा
नई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ

Meena Pathak ने कहा…

सवाल करना मना है , सितम तो देखिये भला
अपना भी उसे कैसे कहें ,पास होके भी दूर ही खड़ा है मगर //.... क्या बात , बहुत खूब

शारदा अरोरा ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद ...Meena ji

Saras ने कहा…

बहोत खूबसूरत ग़ज़ल है शारदाजी

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर

मित्रों कुछ व्यस्तता के चलते मैं काफी समय से
ब्लाग पर नहीं आ पाया। अब कोशिश होगी कि
यहां बना रहूं।
आभार

संतोष पाण्डेय ने कहा…

खूबसूरत गज़ल। सुन्दर एहसास .

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

ख़्वाब कितने महँगे हैं , बाज़ार में बिकते नहीं
नक्दे-जाँ के बदले , दिल ही चाहिये मगर

Naveen Mani Tripathi ने कहा…

bahut sundar prastuti

Unknown ने कहा…

बहुत खूब !खूबसूरत गज़ल। सुन्दर एहसास .

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

वाह... उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी

tbsingh ने कहा…

bhavpurn rachana