गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

मरुस्थल में बारिश का बहाना

बुलाना और बात है , निभाना और बात है 
लुभाना और बात है , दिल में बसाना और बात है 

दौड़ती रहती है सारी दुनिया जिस के पीछे 
मरुस्थल में बारिश का बहाना और बात है 

बुझ गया दिल तेरी नजर-अन्दाज़ी से 
तेरी फ़राख़-दिली का फ़साना और बात है 

मजबूर ही होता है आशिक दिल-लगाई में 
पड़ी सिर पर बजाना और बात है 

बुलाना और बात है , निभाना और बात है 
लुभाना और बात है , दिल में बसाना और बात है 


7 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (27-12-13) को "जवानी में थकने लगी जिन्दगी है" (चर्चा मंच : अंक-1474) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर !
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राजीव कुमार झा ने कहा…

बहुत सुन्दर .
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धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

दौड़ती रहती है सारी दुनिया जिस के पीछे
मरुस्थल में बारिश का बहाना और बात है

वाह ! बहुत खूब .....

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poonam ने कहा…

bahut sunder

अनुपमा पाठक ने कहा…

"दौड़ती रहती है सारी दुनिया जिस के पीछे
मरुस्थल में बारिश का बहाना और बात है"

वाह!

Alpana Verma ने कहा…

दौड़ती रहती है सारी दुनिया जिस के पीछे
मरुस्थल में बारिश का बहाना और बात है

**वाह!यह शेर ख़ास लगा.
अच्छी ग़ज़ल.

**** नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!****