सोमवार, 18 अगस्त 2014

ये चाहतों का सफर

ज़िन्दगी एक तन्हा सफ़र है गोया 
हर कदम राह में यार की उठता हो गोया 

उसके आने से महकता है समाँ 
उसकी मेहरबानी भी सँग-सँग हो गोया

करवटें बदलती रहती हूँ मैं 
नीँद उसको भी तो आ गई हो गोया

वक्त के बेरहम हाथों ने बख़्शा किसे 
हर सीने में नमी ही तैरती हो गोया

ये चाहतों का सफर ले आया है 
इक जँग खुद से भी छिड़ी हो गोया

वो मेरा दोस्त है तो दुश्मनी क्यूँ-कर 
दिए के साथ-साथ कोई हवा हो गोया

4 टिप्‍पणियां:

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  2. आप का लेखन बहुत ही भावपूर्ण है.... बधाई !!

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं