गुरुवार, 6 नवंबर 2014

दिल बाग़-बाग़ मुझे करना पड़ा

A few lines for my loving daughter ...

अपने क़दमों से तूने नापी दुनिया
दिल बड़ा मुझे करना पड़ा
तेरी उड़ानों में है आगे बढ़ने का मज़ा 
दिल कड़ा मुझे करना पड़ा
सूरज वही , चन्दा भी वही ,
तुझसे जुदा ,घूँट ये भी मुझे भरना पड़ा
सुनूंगी ,महसूस भी करुँगी तुझे
झप्पी जादू की से महरूम मुझे होना पड़ा
शाम होते ही आते लौट परिन्दे घर
नीड़ यादों से रौशन मुझे करना पड़ा
तेरी आहट से सज जाता था इन्तिज़ार भी
जागती आँखों में ख़्वाब मुझे बुनना पड़ा
यकीं तुझ पर भी है,तेरे सितारों पर भी
वक़्त की इस करवट से भी रूबरू मुझे होना पड़ा
दूर महकेगी तू किसी शाख पर
दिल बाग़-बाग़ मुझे करना पड़ा

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (08-11-2014) को "आम की खेती बबूल से" (चर्चा मंच-1791) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

देवदत्त प्रसून ने कहा…

अच्छी प्रस्तुति !

Manoj Kumar ने कहा…

सुन्दर रचना !
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

लाजबाब ......