रविवार, 2 मई 2021

कोरोना


उम्र ये किस मुक़ाम पर है

दुनिया ढलान पर है 


हर तरफ़ है बदहवासी 

सीने में कुछ उफान पर है 


बह  जाये कहीं मनोबल 

तेरी बस्ती तूफ़ान पर है 


प्रार्थना में है बड़ा बल 

दिल में वही रख जो ज़ुबान पर है 


आज वो है कल मैं निशाना 

कोई शिकारी मचान पर है 


आहों पर खड़ा  कर महल 

ये तिलस्म शमशान पर है 


जो गये उनका शोक मनायें के ज़िन्दों की खैर करें

मेरे मौला , ये कौन सी मुसीबत जहान पर है


दुआ और दवा का मेल हो 

मन का पंछी उड़ान पर है 

1 टिप्पणी:

मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं