रिश्तों की अमीरी अक्सर
आड़े वक्त में अँजुरि से झर जाया करती है
न ज़ुदा करना ज़मीन से किसी को
वरना पनपते नहीं ,जड़ें भी मर जाया करती हैं
सलोनी सूरत भी जो गिर जाये नजरों से
तो दिल से उतर जाया करती है
लहज़ा बता देता है रिश्ते की गहराई
यूँ ही नहीं संवेदनाएँ मर जाया करती हैं
सबको तौल रहे हो एक ही तराजू पर
ये खुमारी भी वक्त के साथ उतर जाया करती है
ऐ मौत के मुसाफिर ,उल्टी गिनती है साँसों की
ज़िन्दगी पकड़ने की खातिर ही ,उम्र गुजर जाया करती है
कोई पहलू नहीं रहता अछूता कलम के हाथों से
अहसास की स्याही पन्नों पर बिखर जाया करती है
सूरज तो हरदम है सफर पर अपने
भर लो मुठ्ठी ,किरणें घर-घर जाया करती हैं
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (10-01-2021) को ♦बगिया भरी बबूलों से♦ (चर्चा अंक-3942) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--हार्दिक मंगल कामनाओं के साथ-
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार 9 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंमनभावन।
वाह! बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर।
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंnice info!! can't wait to your next post!
जवाब देंहटाएंcomment by: muhammad solehuddin
greetings from malaysia
Bahut shukriya , meri bahut sari rachnayen blog par pahle se hi available hain .
जवाब देंहटाएंSharda Arora
nice info
जवाब देंहटाएंInfo UMJ