बुधवार, 7 जनवरी 2009

तन्हाईयों से पूछा

मैंने तन्हाईयों से पूछा अक्सर

क्यों मेरे घर का पता है याद तुम्हें

कस के पकड़ा है मेरा हाथ

मैंने जब जब भुलाया है तुम्हें


जो डेरा डाले हो तुम

कैसे आयेगा जशने मुहब्बत

मेरे घर , मेरे पास कहो


सर माथे से लगाये हूँ तुम्हें

घर आये की मेहमाँ नवाज़ी

कर लूँ , तो चलूँ


तेरे लिए भी सजी है महफ़िल

तेरे हर गीत को मैंने

सीने से लगा , गुनगुनाया है

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं