मैंने तन्हाईयों से पूछा अक्सर
क्यों मेरे घर का पता है याद तुम्हें
कस के पकड़ा है मेरा हाथ
मैंने जब जब भुलाया है तुम्हें
जो डेरा डाले हो तुम
कैसे आयेगा जशने मुहब्बत
मेरे घर , मेरे पास कहो
सर माथे से लगाये हूँ तुम्हें
घर आये की मेहमाँ नवाज़ी
कर लूँ , तो चलूँ
तेरे लिए भी सजी है महफ़िल
तेरे हर गीत को मैंने
सीने से लगा , गुनगुनाया है
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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं