गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

मौसम का तकाजा करना

दो चार गलियाँ घूम लो
फ़िर करके ,
मौसम का तकाजा करना

क्यूँ जुदा थीं अपनी राहें
ये बात ज्यादा करना

वक्त कब रुकता कहीं
गम ज्यादा करना

सीने में दरक गया है कुछ
तुम अन्दाजा करना

ख़ुद से ही बातें करते हैं
मौसम का तकाजा करना

पलकों पे बिठाना तो आता है हमें
तुम नूर की दुनिया से इशारा करना

8 टिप्‍पणियां:

  1. शारदा अरोरा जी!
    आपकी गजल ने दिल के तारों को
    झंकृत कर दिया।
    आप निरन्तर अच्छा लिखती रहें।
    इन्ही कामनाओं के साथ-

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  2. सुन्दर...भावपूर्ण.
    =================
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  3. वाह !! क्या बात है
    मजेदार ...मज़ा आ गया

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  4. सुबह सवेरे
    कोहरे में सब कुछ
    धुंधला गया
    गुलाब का बूटा
    जिससे महकता था आंगन
    दरख्त जहां पलती थी गर्माहट
    मोड़ जहां इंतजार का डेरा था
    कुछ भी तो नहीं दिख रहा

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  5. Shardaaji, aapki jo gehrayee hai, us mutabiq is samay tippanee nahee de paungee...mujhe chainse padhna hoga...aapka mere blogspe intezaar hai...jaise koyi pyara prichit dost, barson se na mila ho...kya aapke aagmanse mera man prasann karayengee aap?
    Yaa aapbhi naraz hain mujhse?
    Hain to haath jod phir ekbaar kshama prarthi hun...galati kahan kee ye to theekse nahee samajh paayee...gunaah to nahee nahee...lekin kisee karan dil dukhaya gaya ho to haath jod binatee hai,"kshama badankee den chhotankee utpaat..!

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  6. पलकों पे बिठाना तो आता है हमें
    तुम नूर की दुनिया से इशारा करना

    बहुत खूब। सुनदर पँक्तियाँ ।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं