बुधवार, 20 मई 2009

भरम न हो तो

वो साथ नहीं आयेगा , साथ चलने का भरम होता है
भरम न हो तो ये दिल तन्हाँ होता है

दिल टूटे या सलामत रहे , भरम को साबुत रख कर
चलने की वजह बनता है

चारों ओर जो तू ही तू है , मेरी हस्ती क्या है
और बता कैसे गुमाँ बनता है

सुबहों को शामों में ढलते देख रही हूँ , दिल जला कर ही सही
मेरे हिस्से में कुछ तो उजाला होगा

11 टिप्‍पणियां:

  1. भरम न हो तो ये दिल तन्हाँ होता है
    वाकई में आपने ये सच ही कहा है....

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  2. जीवन एक भरम है भरम में गुज़र जाता है
    भरम ही वो शह है जिसमें जीने का मज़ा आता है ||
    सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना है ,बधाई ---भाभी |

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  3. जीवन एक भरम है भरम में गुज़र जाता है
    भरम ही वो शह है जिसमें जीने का मज़ा आता है ||
    सुन्दर और मर्मस्पर्शी रचना है ,बधाई ---भाभी |

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  4. भरम सलामत हो अगर उठते रोज सवाल।
    भ्रमित भरम से हो कोई जीवन है जंजाल।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.

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  5. भ्रम न हो तो सत्य कि खोज कौन करेगा?

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  6. aapke blog par pahli baar aana hua hai khushi yah jaankar hui ki aap apne uttarkhand se hai.... ab aapke blog par aane ka silsila jaari rahega.. yah kavita bahut achchi lagi.. shukria ..

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  7. aur kabhi kabhi isi bhram ko pale hue hamari poori jindagi bhi gujar jaati hai.
    achchhi rachna hai.
    Navnit Nirav

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  8. मर्मस्पर्शी रचना है.बधाई !!!

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं