ये और बात है कि जफा , रास आती कब है
कैसे चुन लूँ मैं काँटें, चमन की झोली से
गुलाब रह-रह के जब लुभाते हैं
घर से चलते हैं , साबुत आने की दुआ करते हैं
कैसे न माँगें खैर उनकी , जो दुआओं से हमें मिलते हैं
बिखरे -बिखरे से वजूद हों जब , उम्मीद की डोरी से सिले जाते हैं
वफ़ा के रँग जो सुबह न सहेजे तो , शाम होते ही गुरबत का गिला करते हैं
इश्क जादू की तरह सर चढ़ता है , बेवफाई अन्धे कुँए में ला पटकती है
ये है दुनिया का चलन , नन्हे जिगर को खिलौना समझती है
बहुत सकारात्मक सोच है ...जोहमेशा कायम रहे.
जवाब देंहटाएंहया
इश्क का जादू चढ़ा सर कौन फिर समझायेगा।
जवाब देंहटाएंबेवफाई में खिलौना बन के ही रह जायेगा।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
बिखरे -बिखरे से वजूद हों जब , उम्मीद की डोरी से सिले जाते हैं
जवाब देंहटाएंवफ़ा के रँग जो सुबह न सहेजे तो , शाम होते ही गुरबत का गिला करते हैं
बहुत सुन्दर रचना है बधाई
बहुत सुन्दर रचना है बधाई
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशारदा जी!
जवाब देंहटाएंइसे गीत या गज़ल तो कब नही सकता।
लेकिन यह गद्य गीत है और बहुत अच्छा है।
बधाई।
घर से चलते हैं , साबुत आने की दुआ करते हैं
जवाब देंहटाएंकैसे न माँगें खैर उनकी , जो दुआओं से हमें मिलते हैं
waah sharda ji bahut hi sunder baat keh di,bahutbadhai.
घर से चलते हैं , साबुत आने की दुआ करते हैं
जवाब देंहटाएंकैसे न माँगें खैर उनकी , जो दुआओं से हमें मिलते हैं
-वाह!! बहुत खूब!!!!
"घर से चलते हैं , साबुत आने की दुआ करते हैं
जवाब देंहटाएंकैसे न माँगें खैर उनकी , जो दुआओं से हमें मिलते हैं"
ये पंक्तियां बहुत अच्छी लगी....
इस सुन्दर रचना के लिये बहुत बहुत धन्यवाद...
इश्क जादू की तरह सर चढ़ता है , बेवफाई अन्धे कुँए में ला पटकती है
जवाब देंहटाएंये है दुनिया का चलन , नन्हे जिगर को खिलौना समझती
a unique poem...