लो ये भी पिछला साल गया
मत रह जाना बातों -बातों में
उड़ते हैं परिंदे वे ही तो
गढ़ते हैं कसीदे नभ की शान में जो
कोई कुण्डी-ताला खोल गया
क्या जाने क्या बोल गया
कुछ गुपचुप बातें हैं करते
पिछले सालों के पन्ने भी
चमकते हैं सुनहरी अक्षर ही तो सदियों तक
कानों में मिश्री घोल गया
क्या जाने क्या बोल गया
कुछ घड़ियाँ गुजरीं रो-रो के
जिन पलों न ठहरते पाँव जमीं
जिन्दा तो वही पल सालों -साल रहे
यादों के पन्ने खोल गया
क्या जाने क्या बोल गया
यादों के पन्ने खोल गया
जवाब देंहटाएंक्या जाने क्या बोल गया
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ।
गुजरे साल पर अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी अभिव्यक्ति !
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना....खास तौर पर कुण्डी ताले शब्द का प्रयोग बहुत मन भावन लगा...
जवाब देंहटाएंनीरज
wah
जवाब देंहटाएंशारदा जी, आदाब
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना है...
मेरा मानना है-
बीत गया सो बीत गया अब छोड़ो साल पुराने को
अब नववर्ष का शुभागमन मुबारक हो ज़माने को
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
नव वर्ष पर बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंलोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की
हार्दिक शुभकामनाएँ!
क्या जाने क्या बोल गया
जवाब देंहटाएंकानों में मिश्री घोल गया
कोई कुण्डी-ताला खोल गया
लो ये भी पिछला साल गया
...वाह.