हो सामने या छिपा दिल में , वो रहबर नहीं होता
तन्हाई भी करती है शिकायत
कि इक पल भी वो आँखों से ओझल नहीं होता
खबर तो उसको भी है इतना भी वो बेखबर नहीं होता
वो कौन सी महफ़िल है जिसमें दिलबर नहीं होता
दिन हो के रात हो भले
किसी सूरज , किसी चंदा, किसी तारे से कमतर नहीं होता
हो कोई भी राह किसी मन्जर का वो मुन्तज़िर नहीं होता
वो कौन सी महफ़िल है जिसमें दिलबर नहीं होता
interesting.....
जवाब देंहटाएंati sunder....
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंsundar rachna badhai is ke liye aap ko
जवाब देंहटाएंAap khamosh kar deti hain..!
जवाब देंहटाएंVaise to vo mahfil bhi mahfil nahi jismen dilbar nahi ... bahut khoob likha hai ...
जवाब देंहटाएंवो कौन सी महफ़िल है जिसमें दिलबर नहीं होता
जवाब देंहटाएंहो सामने या छिपा दिल में , वो रहबर नहीं होता
....बहुत ही खूबसूरत...दिल को छूने वाली रचना.
bahut khoob...
जवाब देंहटाएंमेरी पसंद की रचना ....वाह ! वाकई सुन्दर
जवाब देंहटाएंशानदार - सुन्दर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंhttp://athaah.blogspot.com/
दिन हो के रात हो भले
जवाब देंहटाएंकिसी सूरज , किसी चंदा, किसी तारे से कमतर नहीं होता
हो कोई भी राह किसी मन्जर का वो मुन्तज़िर नहीं होता
behtar khyal
बहुत सुंदर कविता है
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