हसरतों की देहरी पर तुम
पाँव रखना सोच कर
है कहाँ आसान इतना
आना अपना लौट कर
है बहुत मगरूर इंसाँ
दिल लगाना सोच कर
लग गया जो दिल तो फिर
निभाना सीना ठोक कर
बेवफा निकलें जो सपनें
ये भी रखना सोच कर
होगा कहाँ अपना ठिकाना
खुद को पूछो रोक कर
मन्जर भी हैं मंजिल ही
देखो तो ये सोच कर
सफ़र के सजदे में तुम
सिर झुकाना , माथा ठोक कर
पाँव रखना सोच कर
है कहाँ आसान इतना
आना अपना लौट कर
है बहुत मगरूर इंसाँ
दिल लगाना सोच कर
लग गया जो दिल तो फिर
निभाना सीना ठोक कर
बेवफा निकलें जो सपनें
ये भी रखना सोच कर
होगा कहाँ अपना ठिकाना
खुद को पूछो रोक कर
मन्जर भी हैं मंजिल ही
देखो तो ये सोच कर
सफ़र के सजदे में तुम
सिर झुकाना , माथा ठोक कर
बेहद खूबसूरत भावों से सजी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबड़ी हकीकत पसंद बातों पे गज़ल कही आपनें !
जवाब देंहटाएंमन्जर भी हैं मंजिल ही
जवाब देंहटाएंदेखो तो ये सोच कर
बहुत ही सुंदर.
lajawab prastuti....
जवाब देंहटाएंसुन्दर शेर!
जवाब देंहटाएं--
बढ़िया गजल!
मन्जर भी हैं मंजिल ही
जवाब देंहटाएंदेखो तो ये सोच कर
सफ़र के सजदे में तुम
सिर झुकाना , माथा ठोक कर
Kamaal kaa likha hai!
बहुत ही सुन्दर रचना...आभार
जवाब देंहटाएंहसरतों की देहरी पर तुम
जवाब देंहटाएंपाँव रखना सोच कर
यही तो नहीं हो पाता
बेहतरीन कविता ...बेहतरीन भाव
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत अलफाजोँ को चुना हैँ आपने गजल मेँ। गजल मेँ शेरोँ की रिदम अभिभूत करने वाली हैँ। एक से बढ़कर एक लाजबाव शेर प्रस्तुत करने के लिए बहुत-बहुत आभार! -: VISIT MY BLOG :- जमीँ पे है चाँद छुपा हुआ।...........कविता को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ........पर अगर हर काम सोच कर ही किया तो फिर दिमाग हमेशा दिल पर हावी रहता है |
जवाब देंहटाएंदिल और दिमाग का ही तो सारा झगड़ा है , हमेशा दिल का ही कबाड़ा होता है , तो समझाना भी तो दिल को ही पड़ेगा कि ...भाई समझदारी से काम ले , वरना चारों खाने चित्त हो जाएगा ।
जवाब देंहटाएंदिल दिमाग का सामंजस्य ही तो संतुलन है , मगर समझ बहुत चोट खाने के बाद आती है ।
सफर के सजदे मे
जवाब देंहटाएंतुम सिर झुकाना माथा ठोंक कर
उमदा रचना। बधाई।
हसरतों की देहरी पर तुम
जवाब देंहटाएंपाँव रखना सोच कर.....
शुरूआत ही इतनी उम्दा है....
है कहाँ आसान इतना
आना अपना लौट कर
है बहुत मगरूर इंसाँ
दिल लगाना सोच कर...
बहुत अच्छी रचना लगी...बधाई.
हसरतों की देहरी पर तुम
जवाब देंहटाएंपाँव रखना सोच कर....
पर पाँव रखते हुवे कौन सोचता है .... ये तो जब सहना पढ़ता है तभी समझ आता है ... अच्छा लिखा है ...
सब कुछ सोच कर ही होता तो फिर बात ही क्या थी.
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति.