चन्दा तेरा रूप पिऊँ क्या
दूर तू है तेरा साथ जिऊँ क्या
तू तन्हा दिन रात चला है
तेरी पीड़ है मुझसे जुदा क्या
मेरी आँख का आँसू चुप है
और भला खामोश सदा क्या
साथ साथ चलते हैं हम तुम
कितने साबुत और बचा क्या
तेरी मुसाफिरी बनी रहे
मेरा क्या है माँगूं क्या
मेरे गीतों में तू ही तू
ऐसा अपना नेह है क्या
दूर से दिखते मिलते हुए
धरती-अम्बर कभी मिले हैं क्या
पी लूँ चाँदनी चुल्लू भर
सफ़र में थोड़ा आराम क्या
सहराँ भी ले लेता दम-ख़म
तू भी बता, तेरी मर्जी क्या
मेरी आवाज में सुन सकते हैं _
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दूर तू है तेरा साथ जिऊँ क्या
तू तन्हा दिन रात चला है
तेरी पीड़ है मुझसे जुदा क्या
मेरी आँख का आँसू चुप है
और भला खामोश सदा क्या
साथ साथ चलते हैं हम तुम
कितने साबुत और बचा क्या
तेरी मुसाफिरी बनी रहे
मेरा क्या है माँगूं क्या
मेरे गीतों में तू ही तू
ऐसा अपना नेह है क्या
दूर से दिखते मिलते हुए
धरती-अम्बर कभी मिले हैं क्या
पी लूँ चाँदनी चुल्लू भर
सफ़र में थोड़ा आराम क्या
सहराँ भी ले लेता दम-ख़म
तू भी बता, तेरी मर्जी क्या
मेरी आवाज में सुन सकते हैं _
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वाह चंदा से उसकी मर्जी आज तक किसी ने नही पूछी होगी……………बेहद सुन्दर भावो का समन्वय्।
जवाब देंहटाएंवाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंपी लूँ चाँदनी चुल्लू भर
जवाब देंहटाएंसफ़र में थोड़ा आराम क्या
सहराँ भी ले लेता दम-ख़म
तू भी बता, तेरी मर्जी क्या
गजब कि पंक्तियाँ हैं ...
बहुत सुंदर रचना.... अंतिम पंक्तियों ने मन मोह लिया...
शारदा जी,
जवाब देंहटाएंखुबसूरत रचना ...............कुछ शेर बहुत पसंद आये .........शुभकामनाये|
मेरे गीतों में तू ही तू
जवाब देंहटाएंऐसा अपना नेह है क्या
बहुत बढ़िया भावपूर्ण रचना ... आभार
मेरी आँख का आँसू चुप है
जवाब देंहटाएंऔर भला खामोश सदा क्या
सुन्दर पंक्तियाँ !
bahut sunder bhav........
जवाब देंहटाएंतेरी मुसाफिरी बनी रहे
जवाब देंहटाएंमेरा क्या है माँगूं क्या...
और...
पी लूँ चाँदनी चुल्लू भर
सफ़र में थोड़ा आराम क्या...
शानदार पंक्तियां हैं...बधाई.
तू तन्हा दिन रात चला है
जवाब देंहटाएंतेरी पीड़ है मुझसे जुदा क्या
Wah! Ye to ham me se bahuton kee peeda hai! Kitni sundartase pooree rachana me dard bayan hua hai!
दूर से दिखते मिलते हुए
जवाब देंहटाएंधरती-अम्बर कभी मिले हैं क्या
यही तो शाश्वत प्रश्न हैं
छोटी बहर की सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएं--
सहराँ भी ले लेता दम-ख़म
तू भी बता, तेरी मर्जी क्या
--
पढ़कर अच्छा लगा!
दूर से दिखते मिलते हुए
जवाब देंहटाएंधरती-अम्बर कभी मिले हैं क्या
जो दीखता है कहाँ होता है..
सुन्दर रचना.
दूर से दिखते मिलते हुए
जवाब देंहटाएंधरती-अम्बर कभी मिले हैं क्या
बेहद सुन्दर और कोमल एहसास.....
regards
बहुत खूबसूरत गज़ल
जवाब देंहटाएंतेरी मुसाफिरी बनी रहे
जवाब देंहटाएंमेरा क्या है माँगूं क्या
wah ...
bahut sunder rachna ...
भावपूर्ण कविता
जवाब देंहटाएंबढिया
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
जवाब देंहटाएंया देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!
दूर से दिखते मिलते हुए
जवाब देंहटाएंधरती-अम्बर कभी मिले हैं क्या
जो दीखता है कहाँ होता है..
भावपूर्ण सुन्दर पंक्तियाँ
भाव बहुत सुन्दर हैं ,लेकिन पंक्तियों मे लय कहीं कहीं टूटती दिखाई देती है ।
जवाब देंहटाएंओह बेचारे चन्दा की व्यथा को आपनें खूब पहचाना ! आखिर को एक पीड़ित ही दूसरे की व्यथा को जानता है !
जवाब देंहटाएंबाकी की टिप्पणी शरद कोकास जैसी !
ख़ामोशी के पीछे इक उदासी आँख से आंसू चुरा रही है .....बधाई ....!!
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