गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

नहीं इसका नाम !


हर आहट को समझा उसका पैगाम
हर मन्जर को किया मैंने सलाम

कितने ही पिये उम्मीद के जाम
कैसी है आहट , कैसे अन्जाम

अँगना में ठहरी है वो ही शाम
कोई सुबह क्या नहीं मेरे नाम

चलता है वही जो हमको थाम
वही अपनी डोरी वही गुलफाम

रँग देखे दुनिया के अजब अनाम
ख़्वाबों-ख्यालों की दुनिया तो ...नहीं इसका नाम , नहीं इसका नाम !

25 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

अँगना में ठहरी है वो ही शाम
कोई सुबह क्या नहीं मेरे नाम

Aah! Kabhi to koyi subah zaroor aapke naam aayegee! Ameeen!

रचना दीक्षित ने कहा…

चलता है वही जो हमको थाम
वही अपनी डोरी वही गुलफाम

रँग देखे दुनिया के अजब अनाम
ख़्वाबों-ख्यालों की दुनिया तो ...नहीं इसका नाम , नहीं इसका नाम !


आपने लिखा है तो लाजवाब तो होना ही है.

अनिल कान्त ने कहा…

एक लम्बी उम्र पसरी है यहाँ

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

"रँग देखे दुनिया के अजब अनाम
ख़्वाबों-ख्यालों की दुनिया तो ...नहीं इसका नाम , नहीं इसका नाम!"

बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

हर आहट को समझा उसका पैगाम
हर मन्जर को किया मैंने सलाम
वाह...
कितने ही पिये उम्मीद के जाम
कैसी है आहट , कैसे अन्जाम
बहुत उम्दा लिखा है...बधाई.

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

कितने ही पिये उम्मीद के जाम
कैसी है आहट , कैसे अन्जाम

वाह!

M VERMA ने कहा…

अँगना में ठहरी है वो ही शाम
कोई सुबह क्या नहीं मेरे नाम

बहुत खूबसूरत

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

चलता है वही जो हमको थाम
वही अपनी डोरी वही गुलफाम

--

बहुत सुन्दर!
लाजवाब हूँ!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत अच्छी रचना...बधाई.

नीरज

Anamikaghatak ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना ..........शब्दों को बहुत सुन्दरता से सजाया है....

निर्मला कपिला ने कहा…

चलता है वही जो हमको थाम
वही अपनी डोरी वही गुलफाम

रँग देखे दुनिया के अजब अनाम
ख़्वाबों-ख्यालों की दुनिया तो ...नहीं इसका नाम , नहीं इसका नाम !
बहुत सुन्दर रचना है। बधाई।

उस्ताद जी ने कहा…

4/10

बस ठीक-ठीक
पढ़ी जा सकने वाली ग़ज़ल
शेर दिल में उतरते नहीं

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

अच्छी पंक्तियां हैं...बधाई।

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

बहुत ही खूबसूरत शब्द चुनेँ, लाजबाव गजल को दिया अंजाम। पाक, साफ, गजल कहतीं आप, शारदा जी को मेरा सलाम। -: VISIT MY BLOG :- पढ़िये मेरे ब्लोग "Sansar" पर गजलेँ और कवितायेँ.........नई रचना.......आँखोँ मेँ काजल लगा दे रे।

मनोज कुमार ने कहा…

अँगना में ठहरी है वो ही शाम
कोई सुबह क्या नहीं मेरे नाम
बिम्ब का अद्भुत प्रयोग। सुंदर ग़ज़ल जि दिल के सात दिमाग में भी जगह बनाती है।

बेनामी ने कहा…

शारदा जी,

हर बार की तरह बहुत सुन्दर पोस्ट.....

अजय कुमार ने कहा…

हर आहट को समझा उसका पैगाम
हर मन्जर को किया मैंने सलाम

अच्छी पंक्तियां ।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

आपकी कविता का हर पैरा अलग अलग भाव देता है .. सभी भाव जीवनसे जुड़े हैं.. पूरी कविता प्रेरित करती है..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर रचना!
--
मंगलवार के साप्ताहिक काव्य मंच पर इसकी चर्चा लगा दी है!
http://charchamanch.blogspot.com/

Asha Lata Saxena ने कहा…

जीवन से जुडी अच्छी रचना के लिए बधाई |आशा

Anamikaghatak ने कहा…

achchhi rachana

अनुपमा पाठक ने कहा…

sundar rachna!

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

चलता है वही जो हमको थाम
वही अपनी डोरी वही गुलफाम


chintanparak rachna hai gambhirta liye huye..

Dorothy ने कहा…

खूबसूरती से पिरोई हुई एक संवेदनशील रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.

mridula pradhan ने कहा…

bahot sunder.