मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

लय लागी है किस से अन्दर


लाख सीपियाँ मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर

मत भोंको सीने में खन्जर
टूटे लम्हे , रूठा पिन्जर
कितनी बातेँ बदल गईं हैं
कहाँ रुका है कोई मन्जर

कौन मुक्कद्दर का है सिकन्दर
क्या तुमने देखा न कलन्दर
बेगाना सा इस दुनिया से
लय लागी है किस से अन्दर

29 टिप्‍पणियां:

kshama ने कहा…

लाख सीपियाँ मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर
Phir ekbaar...kya gazab likh gayeen aap!

Amrita Tanmay ने कहा…

कौन मुक्कद्दर का है सिकन्दर
क्या तुमने देखा न कलन्दर
बेगाना सा इस दुनिया से
लय लागी है किस से अन्दर

कितनी सुन्दर पंक्तियाँ है ...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

लाख सीपियाँ मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर

kya baat hai, chha gaye aapke shabd!!

संध्या शर्मा ने कहा…

लाख सीपियाँ मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर..
Waah bahut khoobsoorat abivyakti.......

vandana gupta ने कहा…

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (10/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com

नीरज गोस्वामी ने कहा…

अद्भुत रचना...बधाई स्वीकारें...
नीरज

ZEAL ने कहा…

@--कितनी बातेँ बदल गईं हैं
कहाँ रुका है कोई मन्जर...

वक़्त रुकता नहीं है , उसके साथ बहुत कुछ निरंतर बदलता रहता है ।
सुदर रचना
बधाई

.

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

sachmuch koi manjar kahan rukta hai.. badhiya kavita.. badhiya geet..

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

कौन मुक्कद्दर का है सिकन्दर
क्या तुमने देखा न कलन्दर
बेगाना सा इस दुनिया से
लय लागी है किस से अन्दर

बहुत सुंदर..... प्रभावी अभिव्यक्ति

उम्मतें ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति !

गौरव शर्मा "भारतीय" ने कहा…

लाख सीपियाँ मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन

वाह क्या बात है..
बेहतरीन पंक्तियाँ...

poonam ने कहा…

ati suunder rachna..

daanish ने कहा…

कौन मुक्कद्दर का है सिकन्दर
क्या तुमने देखा न कलन्दर
बेगाना सा इस दुनिया से
लय लागी है किस से अन्दर

waah - waa !
bilkul pte ki baat
sundar kaavy.. !!

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

लाख सीपियाँ मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर

यह जीवन, जड़-चेतन सभी के लिए मृग मरीचिका ही तो है।
इस सुंदर काव्यकृति के लिए बधाई।

palash ने कहा…

शारदा जी बहुत सुन्दर बा को सुन्दर शब्दों मे पिरो दिया आपने ।
जो आपने मे एक गम्भीर संदेश समाहित किये हुये है ।

Sunil Kumar ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....शुभकामनायें

mridula pradhan ने कहा…

कितनी बातेँ बदल गईं हैं
कहाँ रुका है कोई मन्जर...
ekdam sach hai.....

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan ने कहा…

"bahut achhee prastuti.

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

लाख सीपियाँ मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर

इसी प्यास का नाम ज़िन्दगी है !
सुन्दर,भावपूर्ण रचना के लिए बधाई !

Unknown ने कहा…

लाख सीपियाँ मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
.....इस सुंदर काव्यकृति के लिए बधाई।

Sushant Jain ने कहा…

Wah... Bahut Khoob..


Indian Sushant

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार ने कहा…

आदरणीया शारदा जी
सादर सस्नेहाभिवादन !

लाख सीपियां मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूंढ़ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर

आहाऽऽह ! क्या अद्भुत शब्द संयोजन !
कुछ कुछ पहेलीनुमा सा
बचपन के कुछ खेल भी याद हो आए …
हरा समंदर
गोपी चंदर
बोल मेरी मछली कितना पानी ?

बहुत सुंदर !

तीन दिन पहले प्रणय दिवस भी तो था मंगलकामना का अवसर क्यों चूकें ?
प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं !

♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !♥
बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार

Rajeysha ने कहा…

स्‍त्री को नमन करती एक रचना
http://rajey.blogspot.com/ पर

दिगम्बर नासवा ने कहा…

लाख सीपियाँ मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर ...

Vaah ... kya gazab andaaz hai rachna ka ...

​अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhan ने कहा…

"लय लागी है किस से अन्दर"- यही वह लय है, जीवन को अनुप्राणित करती है. अच्छी रचना. बधाई स्वीकारें. अवनीश सिंह चौहान

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

शारदा जी,
नमस्ते!
कम-से-कम सागर की बैचैनी का कारण तो मैं सुझा सकता हूँ, आपकी अनुमति से:

अगर मैं वक़्त होता सनम, तेरे हाथों से निकल जाता.
बुलाने पर कभी तेरे, मैं चाह कर भी ना आ पाता.
मगर मैं सागर हूँ, क्या करूं मेरी सीरत कुछ ऐसी है.
साहिल लाख नहीं चाहे, मैं रह-रह के भिगोता हूँ.

आशीष
---
लम्हा!!!

बेनामी ने कहा…

लेखन का सुन्दर प्रयास

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

लाख सीपियाँ मोती अन्दर
फिर भी प्यासा क्यों है समन्दर
अपने जैसा ढूँढ रहा है
नट है या फिर कोई बन्दर

शारदा जी ये आपका अपना हुनर है ....
इन चार पंक्तियों ने तो मन जीत लिया ....
बहुत खूब ....!!

BrijmohanShrivastava ने कहा…

समन्दर की प्यास वाली बात अच्छी है जैसा कि नदिया हूं फिर भी हूं प्यासी । सीने अन्दर खन्जर घौपने का सिलसिला न जाने कब से चल रहा है और ये मंजर जाकर कहां रुकेगा। लय बनाने के लिये शव्दों का चयन अदभुत यथा अन्दर,समन्दर,बंदर,खंजर पिंजर मंजर सिकंदर कलंदर बहुत उम्दा ।