न जाने कब सूरज मेरे दरवाजे पे उगेगा
हसरतों की देहरी पर कोई फूल खिलेगा
क्यों नाराज होऊँ मैं इन्तज़ार की शब से
के अहले-सफ़र भी मुश्किल से कटेगा
स्याह अन्धेरे में किधर चलना है
सिम्तों का पता भी मुश्किल से मिलेगा
चलने को कोई बात भी चाहिए के
रौशनी को चरागे-दिल ही जलेगा
दम कितना है ख़्वाबों में क़दमों में
इस ख़म का पता भी सुबह ही चलेगा
किताब मिली --शुक्रिया - 21
4 दिन पहले
स्याह अन्धेरे में किधर चलना है
जवाब देंहटाएंसिम्तों का पता भी मुश्किल से मिलेगा
वाह...बहुत उम्दा...
वो सुबह कभी तो आयेगी। जल्द आनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंक्यों नाराज होऊँ मैं इन्तज़ार की शब से
जवाब देंहटाएंके अहले-सफ़र भी मुश्किल से कटेगा
वाह बेहतरीन गज़ल. सादर.
हर मजहब हमें इंसानियत सिखाना चाहता है यह तो सच है लेकिन इन्सान इसे तोड़-मदोड़कर पेश करता है. जैसे गीता को कुछ लोग इस तरह पेश करते हैं जैसे वह युद्ध का समर्थन करती हो और कुरान आतंकवाद का.
जवाब देंहटाएंमैं तो उस सुद्ध ज्ञान की बात कर रहा हूँ जो इन्म्र छिपा है...बिना किसी इंसानी लग लपेट के.
ब्लॉग पर आने के लिए बहूत शुक्रिया....आते रहिये यही गुजारिश.
और इसी के साथ मैं आपका सौंवा समर्थक भी बन गया...सैकड़े की बधाई हो आपको.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंस्याह अन्धेरे में किधर चलना है
जवाब देंहटाएंसिम्तों का पता भी मुश्किल से मिलेगा
चलने को कोई बात भी चाहिए के
रौशनी को चरागे-दिल ही जलेगा
Gazab ke alfaaz hain!
I would like to say thanks for the efforts you have made compiling this article. You have been an inspiration for me. I’ve forwarded this to a friend of mine.
जवाब देंहटाएंFrom Great talent