मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

ख़म का पता

जाने कब सूरज मेरे दरवाजे पे उगेगा
हसरतों की देहरी पर कोई फूल खिलेगा

क्यों नाराज होऊँ मैं इन्तज़ार की शब से
के अहले-सफ़र भी मुश्किल से कटेगा

स्याह अन्धेरे में किधर चलना है
सिम्तों का पता भी मुश्किल से मिलेगा

चलने को कोई बात भी चाहिए के
रौशनी को चरागे-दिल ही जलेगा

दम कितना है ख़्वाबों में क़दमों में
इस ख़म का पता भी सुबह ही चलेगा

8 टिप्‍पणियां:

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

स्याह अन्धेरे में किधर चलना है
सिम्तों का पता भी मुश्किल से मिलेगा
वाह...बहुत उम्दा...

SANDEEP PANWAR ने कहा…

वो सुबह कभी तो आयेगी। जल्द आनी चाहिए।

Amit Chandra ने कहा…

क्यों नाराज होऊँ मैं इन्तज़ार की शब से
के अहले-सफ़र भी मुश्किल से कटेगा

वाह बेहतरीन गज़ल. सादर.

शरद सिन्हा ने कहा…

हर मजहब हमें इंसानियत सिखाना चाहता है यह तो सच है लेकिन इन्सान इसे तोड़-मदोड़कर पेश करता है. जैसे गीता को कुछ लोग इस तरह पेश करते हैं जैसे वह युद्ध का समर्थन करती हो और कुरान आतंकवाद का.
मैं तो उस सुद्ध ज्ञान की बात कर रहा हूँ जो इन्म्र छिपा है...बिना किसी इंसानी लग लपेट के.

ब्लॉग पर आने के लिए बहूत शुक्रिया....आते रहिये यही गुजारिश.

शरद सिन्हा ने कहा…

और इसी के साथ मैं आपका सौंवा समर्थक भी बन गया...सैकड़े की बधाई हो आपको.

संध्या शर्मा ने कहा…

सुन्दर रचना....

kshama ने कहा…

स्याह अन्धेरे में किधर चलना है
सिम्तों का पता भी मुश्किल से मिलेगा

चलने को कोई बात भी चाहिए के
रौशनी को चरागे-दिल ही जलेगा
Gazab ke alfaaz hain!

Always Unlucky ने कहा…

I would like to say thanks for the efforts you have made compiling this article. You have been an inspiration for me. I’ve forwarded this to a friend of mine.

From Great talent