तुम जो चाहे सजा दे लो
मेरी बात और है , मैंने तो मुहब्बत की है
चाँदनी रात का भरम ही सही
दिल जला कर रौशनी की है
रूठ कर बैठा है मेरे घर में कोई
बन्द दरवाजों से मिन्नत की है
जिन्दगी यूँ भी गुजर जाती है
वीरानों से भी दोस्ती की है
हाले-दिल किस को सुनाने लगे
सजा में क्या कोताही की है
सह तो लेते हैं खुदा का करम
आदमी का करम , खुदा की मर्जी ही है
तुम जो चाहे सजा दे लो
मेरी बात और है , मैंने तो मुहब्बत की है
Satpal Khayaal at Rekhta Mushaira
2 दिन पहले
सुन्दर ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंचाँदनी रात का भरम ही सही
जवाब देंहटाएंदिल जला कर रौशनी की है ...
वाह ... चांदनी रात का भरम रखने को दिल जला गिया ... बहुत खूब लिखा है ...
चाँदनी रात का भरम ही सही
हटाएंदिल जला कर रौशनी की है
रूठ कर बैठा है मेरे घर में कोई
बन्द दरवाजों से मिन्नत की है
Behad sundar panktiyan!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआभार!
Bahut khoob Shardaji!
हटाएंरूठ कर बैठा है मेरे घर में कोई
जवाब देंहटाएंबन्द दरवाजों से मिन्नत की है
जिन्दगी यूँ भी गुजर जाती है
वीरानों से भी दोस्ती की है
....वाह! बहुत सुंदर प्रस्तुति!
रूठ कर बैठा है मेरे घर में कोई
जवाब देंहटाएंबन्द दरवाजों से मिन्नत की है
बेहतरीन रचना...बधाई स्वीकारें .
नीरज
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंतुम जो चाहे सजा दे लो
जवाब देंहटाएंमेरी बात और है , मैंने तो मुहब्बत की है
क्या बात है. दिल से निकली रचना. बधाई.
चाँदनी रात का भरम ही सही
जवाब देंहटाएंदिल जला कर रौशनी की है
रूठ कर बैठा है मेरे घर में कोई
बन्द दरवाजों से मिन्नत की है
lajawab...
wah bahut khoob
जवाब देंहटाएं